गुरुदेव सियाग सिद्धयोग, मंत्र जाप और ध्यान पर आधारित आध्यात्मिक साधना है। यह योग ‘नाथमत’ के योगियों की देन है। इससे साधक के त्रिविध ताप - आधि-भौतिक, आधि-दैहिक और आधि-दैविक शांत हो जाते हैं। इस साधना में गुरुदेव सियाग के चित्र पर ध्यान करने से साधक को उसकी आवश्यकता के अनुसार यौगिक क्रियाएँ स्वतः होने लगती हैं। ये यौगिक क्रियाएँ साधक की सभी प्रकार की शारीरिक व मानसिक परेशानियों को शांत करती हैं। नियमित साधना करने पर साधक की वृत्तियों में बदलाव आने से वह असीम शांति और आनन्द का अनुभव करता है। यह पूर्णतः निःशुल्क है।
शक्तिपात दीक्षा
गुरु-शिष्य परम्परा में दीक्षा का, एक विधान है। सभी प्रकार की दीक्षाओं में ‘शक्तिपात-दीक्षा’ सर्वोत्तम होती है। समर्थ सदगुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग संजीवनी मंत्र द्वारा शक्तिपात दीक्षा देते हैं जिससे साधक की कुण्डलिनी जागृत हो जाती है।
कुण्डलिनी जागरण
गुरु-शिष्य परम्परा में जो शक्तिपात दीक्षा का विधान है, उसके अनुसार गुरु अपनी शक्ति से कुण्डलिनी को चेतन करके ऊपर को चलाते हैं। गुरु का इस शक्ति पर पूर्ण प्रभुत्व होता है, इसलिए वह उस गुरु के आदेश के अनुसार चलती है।
स्वतः होने वाली यौगिक क्रियाएँ
यौगिक क्रियायें दिव्य शक्ति द्वारा निर्दिष्ट हैं और प्रत्येक साधक के लिये भिन्न होती हैं । ऐसा इस कारण होता है क्योंकि दिव्य शक्ति यह भली भाँति जानती है कि किस साधक के लिये कौनसी मुद्रा आवश्यक है।
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संजीवनी मंत्र प्राप्त करें
गुरुदेव सियाग संजीवनी मंत्र द्वारा साधक को शक्तिपात दीक्षा देते हैं। इस मंत्र का अधिक से अधिक मानसिक जाप बिना होठ और जीभ हिलाए करना है। ध्यान करते समय भी मानसिक जाप करते रहना है।
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1.
आरामदायक स्थिति में, किसी भी दिशा में मुँह करके बैठ जाएं। आप जमीन पर पालथी मार कर, कुर्सी पर या लेट भी सकते हैं, अगर बैठने की स्थिति में नहीं हैं तो।
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2.
एक या दो मिनट के लिए गुरुदेव के चित्र को एकाग्रता से देखें।
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3.
फिर आँखें बंद करके समर्थ सदगुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग के चित्र को अपने आज्ञाचक्र पर (जहाँ बिन्दी या तिलक लगाते हैं) केन्द्रित कर, गुरुदेव से 15 मिनट के लिए ध्यान स्थिर करने की प्रार्थना करें।
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4.
अब गुरुदेव को आज्ञाचक्र पर देखते हुए और साथ ही संजीवनी मंत्र का मानसिक जाप करते हुए (बिना होठ-जीभ हिलाए)। ध्यान करें।
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5.
इस दौरान कोई भी यौगिक क्रिया (आसन, बंध, मुद्रा या प्राणायाम) हो तो घबराएँ नहीं तथा न ही इन्हें रोकने का प्रयास करें | ये क्रियाएँ शारीरिक विकारों को ठीक करने के लिए होती हैं। ध्यान की अवधि पूर्ण होते ही सामान्य स्थिति हो जाएगी।
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6.
इस विधि से सुबह-शाम खाली पेट नियमित रूप से (केवल 15 मिनट) ध्यान करते रहें।