स्वतः होने वाली यौगिक क्रियाएँ

गुरुदेव सियाग के ध्यान के दौरान ये यौगिक क्रियाएँ स्वतः होती हैं।

  • सिद्धयोग साधना आरम्भ करने पर, साधक कभी-कभी स्वैच्छिक होने वाली यौगिक क्रियाओं से यह सोचकर भयभीत हो जाता है कि या तो कुछ गलत हो गया है या फिर किसी अदृश्य शक्ति की पकड़ में आ गया है लेकिन यह भय निराधार है। वास्तव में यह यौगिक क्रियायें या शारीरिक हलचलें दिव्य शक्ति द्वारा निर्दिष्ट हैं और प्रत्येक साधक के लिये भिन्न-भिन्न होती हैं।

  • ऐसा इस कारण होता है कि इस समय दिव्य शक्ति जो गुरू सियाग की आध्यात्मिक शक्तियों के माध्यम से कार्य कर रही होती हैं, वह यह भली भाँति जानती हैं कि साधक को शारीरिक एवं मानसिक रोगों से मुक्त करने के लिये कौनसी विशेष मुद्रायें आवश्यक हैं। यह क्रियायें कोई भी हानि नहीं पहुँचाती हैं तथा इनके द्वारा शरीर-शोधन से असाध्य रोगों सहित सभी तरह के शारीरिक एवं मानसिक रोगों से पूर्ण मुक्ति मिल जाती है, यहां तक कि वंशानुगत रोग जैसे हीमोफिलिया से भी छुटकारा मिल जाता है। सभी तरह के नशे छूट जाते हैं।

  • साधक अन्तर्ज्ञान में वृद्धि, भौतिक जगत के बाहर के अस्तित्व के विभिन्न स्तरों का अनुभव एवं अनिश्चित काल तक का भूत व भविष्य देख सकने की क्षमता आदि प्राप्त कर सकता है। आत्मसाक्षात्कार होने के पश्चात आगे चल कर साधक को सत्यता का भान हो जाता है जो उसे कर्मबन्धनों से मुक्त करता है और इस प्रकार कर्मबन्धनों के कट जाने से दुःखों का ही अन्त हो जाता है।
  • कुण्डलिनी के सहस्त्रार में पहुँचने पर साधक की आध्यात्मिक यात्रा पूर्ण हो जाती है। इस अवस्था पर पहुँचने पर साधक को स्वयं के ब्रह्म होने का पूर्ण एहसास हो जाता है, इसे ही ‘मोक्ष’ कहते हैं। फिर भी यदि कोई साधक इन क्रियाओं से अत्यधिक भयभीत है तो वह इन्हें रोकने हेतु गुरुदेव से प्रार्थना कर सकता है। प्रार्थना करने पर क्रियाएँ तत्काल रुक जायेंगी।

गुरुदेव सियाग के ध्यान के दौरान स्वतः होने वाली यौगिक क्रियाएँ

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