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1984 में श्री कृष्ण की सिद्धि
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

गुरुदेव का बाल्यकाल गरीबी एवं कठिनाईयों से पूर्ण था। जब गुरुदेव मात्र ढाई वर्ष के थे तब उनके पिताजी का निधन हो गया। संत शिरोमणी शक्तिमयी माँ ने मेहनत-मजदूरी करके गुरुदेव को पढ़ाया लिखाया। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात् गुरुदेव रेलवे में लिपिक के पद पर कार्य करने लगे। लेकिन आर्थिक तंगी ज्यों की त्यों बनी रही।

  • 1969 में गुरुदेव को गायत्री-सिद्धि प्राप्त हुई। इसके कुछ समय पश्चात गुरुदेव को ब्रह्ममुहूर्त में भगवान श्री कृष्ण के नाम जप करने का आदेश मिला। तब गुरुदेव ने भगवान श्री कृष्ण का नाम जपना प्रारम्भ किया।

  • कुछ समय बाद उनको बद्रीनाथ जाने की इच्छा हुई। बद्रीधाम जाकर गुरुदेव ने भगवान से प्रार्थना की तो ध्यानावस्था में बद्रीनाथ जी ने कहा कि मेरे पास जो कुछ है, वह तो मैं मोहनलाल (श्री कृष्ण ) से लाया हूँ। अतः आप वृन्दावन या मथुरा जाओ। गुरुदेव ने जब वृन्दावन जाकर करुण प्रार्थना की तो भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा कि यहाँ तो मैं 'ग्वाला' था, आप द्वारिका जाओ, वहाँ पर मैं राजा (द्वारिकाधीश) था। वहाँ से जो आप माँगोगे वही मिल जाएगा। गुरुदेव ने तंग आकर कहा कि "देना है तो दे दे, फालतू के बहाने क्यों बनाता है ?" इसके बाद गुरुदेव ने देखा कि श्रीकृष्ण बाँसुरी बजाते हुए पास में आ गए तथा गुरुदेव से कहा कि आप भी बाँसुरी बजाओ। गुरुदेव ने कहा कि मुझे बाँसुरी बजानी नहीं आती है। इस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं आपको बाँसुरी बजाना सिखा दूंगा, ऐसे कहते हुए बाँसुरी गुरुदेव के हाथ में रख दी तथा भगवान् श्रीकृष्ण अदृश्य हो गए।

  • इसके बाद गुरुदेव कई बार द्वारिका जाकर आए। यात्रा के प्रत्येक दौर में भगवान् श्री कृष्ण दर्शन देते तथा कहते कि तेरी आराधना के पूर्ण होने पर जो तू माँगेगा, वही तुझे मिलेगा।

  • सन् 1984 में द्वारिका की अंतिम यात्रा पर श्रीकृष्ण ने गुरुदेव को दर्शन दिये तथा कहा कि,

  • “आज मेरी सारी दिव्य शक्ति, मैं आपको देता हूँ। अब यहाँ मेरे पास वापस आने की व मेरे से माँगने की जरूरत नहीं है तथा जब आपकी कुंडलिनी के तुला राशि का चन्द्रमा उच्च राशि में आएगा, तब मैं आपको धन और सारे भौतिक सुखों से लाभ स्वतः ही दे दूंगा।"

    गुरुदेव कहते हैं कि श्री कृष्ण के दर्शन के बाद मुझे श्री कृष्ण की सिद्धि हो गई।

  • एक दिन गुरुदेव ने ध्यान में देखा कि वह एक अद्भुत सागर के किनारे पहुँच गए हैं। पुराणों में सुमेरू पर्वत का वर्णन आता है, वैसा ही पहाड़ गुरुदेव ने देखा जिसके पास एक नाव डोरी से बंधी हुई खड़ी थी। फिर गुरुदेव को वह नाव अपने पास आती हुई दिखाई दी। उस नाव के अंदर एक नव-दस मास का अति सुंदर बालक सोया हुआ दिखाई दिया। उसका चेहरा अतिसुंदर, अद्भुत और प्रकाशमय था। जब गुरुदेव ने ध्यान से देखा तो बालक रूप में श्री कृष्ण सोये हुए दिखाई दिये। बालक रूपी श्रीकृष्ण ने गुरुदेव के पास आकर कहा कि मैं पृथ्वीलोक पर श्री कृष्ण रूप में रहता हूँ परन्तु दिव्यलोक में, मैं इसी बालक रूप में रहता हूँ। इसके बाद श्रीकृष्ण के दर्शन पूरे हुए। गुरुदेव कहते हैं कि, "श्री कृष्ण की शक्ति, हर समय मेरे साथ रहती है तथा हर कार्य को बखूबी पूरा करती है।"

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