जीएसएसवाई के लाभ

गुरुदेव सियाग सिद्धयोग दर्शन से त्रिविध तापों (आधि-दैहिक, आधि-भौतिक, आधि-दैविक) का शमन (नाश) होता है। साधक अपना सर्वांगीण विकास करता हुआ जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है

शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति

  • गुरुदेव सियाग के शक्तिपात दीक्षा से साधक की कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है। यह जाग्रत कुण्डलिनी ध्यान के दौरान विभिन्न यौगिक क्रियाएँ करवाती है जैसे कि – आसान, बंध, मुद्रा, प्राणायाम या फिर हंसना, रोना, शरीर का हिलना डुलना आदि।

  • शरीर के केवल उसी भाग में यौगिक क्रियाएँ होतीं हैं जो रोग ग्रस्त है। उदाहरण के लिए अगर आपके कंधों या गले में कोई तकलीफ है तो इन्हीं अंगों में यौगिक्र क्रियाएँ होंगी। जब तक ये, रोग मुक्त ना हो जाये तब तक कुण्डलिनी अपने अधीन ये यौगिक्र क्रियाएँ ध्यान के दौरान स्वतः करवाती है।

  • प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकता के अनुसार ही यौगिक क्रियाएँ होतीं हैं इसलिए हर साधक की यौगिक क्रियाएँ दूसरे से भिन्न होतीं हैं।

  • यह यौगिक क्रियाएँ ध्यान के समय मातृ शक्ति कुण्डलिनी अपने अधीन करवाती है। ये क्रियाएँ साधक की अपनी इच्छा अनुसार नहीं होतीं। साधक न तो इन्हें करवा सकता है और न ही इन्हें रोक सकता है।

  • ये यौगिक क्रियाएँ शरीर के रोग ग्रस्त भाग को स्टीमुलेट और टोन अप करके उसे रोग मुक्त कर देती है। इस प्रकार यह शरीर को पूर्ण रूप से सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्त कर देती है। गुरुदेव सियाग सिद्धयोग दर्शन की साधना से साधकों के असाध्य रोग जैसे कि- एड्स, कैंसर, शुगर, गठिया, हेपेटाइटिस-बी एवं मानसिक तनाव, विषाद, फोबिया, अनिद्रा, गुस्सा, चिड़चिड़ापन आदि भी आसानी से ठीक हो जाते हैं।

  • इस साधना का परिणाम साधक की गुरुदेव सियाग के प्रति श्रद्धा, विश्वास और समर्पण पर निर्भर करता है।

  • गुरुदेव सियाग सिद्धयोग की नियमित साधना से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

  • विद्यार्थियों द्वारा इस साधना के नियमित अभ्यास से एकाग्रता, ग्रहण करने की क्षमता और स्मरण शक्ति में विकास होता है।

नशों से मुक्ति

  • गुरुदेव सियाग सिद्धयोग की नियमित साधना से साधक को हर प्रकार के नशों जैसे कि- अफीम, गांजा, हेरोइन, शराब, सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा से सहज ही मुक्ति मिल जाती है।

  • साधक को इन्हें छोड़ने के लिए किसी प्रकार का प्रयास नहीं करना पड़ता।

  • गुरुदेव सियाग सिद्धयोग साधना से साधक के अन्तर्मन से इन नशे की वस्तुओं के प्रति चाहत खत्म हो जाती है।

  • इसलिए इन वस्तुओं के छूटने पर साधक को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता।

  • चुंकि साधक इन नशे की वस्तुओं को सहज ही छोड़ता है इसलिए वह दुबारा फिर कभी इन नशों की आदत में नहीं पड़ता।

  • गुरुदेव कहते हैं- आपको वस्तुओं को छोड़ने की आवश्यकता नहीं है, वस्तुऐं आपको स्वयं छोड़ के चली जाएँगी।

  • इसी प्रकार खान-पान की वस्तुओं में भी, इस साधना से, उन खाद्य पदार्थों के प्रति रूचि हट जाती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।

आध्यात्मिक लाभ

  • गुरुदेव सियाग सिद्धयोग की नियमित साधना से साधक की वृत्तियों में परिवर्तन आता है। तामसिक वृत्तियों से राजसिक वृत्तियों की तरफ और राजसिक से सात्त्विक की ओर बढ़ते हुए साधक अपने आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होता है।

  • ध्यान की एक उच्च अवस्था के दौरान साधक को प्रातिभ ज्ञान होता है। इसमें साधक अनिश्चित काल के भूत और भविष्य की घटनाओं को देखता और सुनता है।

  • यह साधना साधक को गृहस्थ जीवन जीते हुए सांसारिक सुख एवं ईश्वर अनुभूति- दोनों की प्राप्ति कराती है।

  • अन्त में साधक कैवल्यपद की प्राप्ति से जन्म-मरण के बंधन से हमेशा के लिए मुक्त हो जाता है।

शेयर करेंः