Image राम चरण मीना

राम चरण मीना

उज्जवल वेश में गुरुदेव के दर्शन

पता

राम चरण मीना सी-51, कुसुम विहार जगतपुरा, जयपुर

सदगुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग, व दादा गुरु महायोगी श्री गंगाईनाथ जी ब्रह्मलीन के 'चरणकमलों में मेरा कोटि-कोटि नमन्। मैं गुरुदेव के बारे में बताना चाहता हूँ कि श्री सियाग एक महा योगेश्वर प्रवर्ति मार्गी सन्त हैं, जो सिद्वयोग में वर्णित शक्तिपात दीक्षा के द्वारा शरीर रूपी प्रयोगशाला में प्रैक्टीकल करा रहे हैं, जिससे साधक के त्रिविधताप शांत (आधि भौतिक, आधि दैहिक व आधि दैविक) होकर, साधक के सातों कोशों का विकास हो रहा हैं, और कैवल्य पद को प्राप्त कर, मोक्ष प्राप्त कर रहे हैं।

  • यह सब गुरुदेव श्री सियाग जो योगेश्वर श्री कृष्ण के अवतारी हैं, उनकी कृपा से हो रहा है। मैं इस सम्बन्ध में आपको बताना चाहता हूँ कि दिनांक- 08 नवम्बर 2013 को पूरे दिन मैं यह सोचता रहा कि, मुझे वृन्दावन व गोवर्धन जी जाना है। मैं दोनों ही जगह जाना चाहता था, क्योंकि मेरी आंतरिक इच्छा हो रही थी। यह सोचता-सोचता मैं रात को सो गया ।

फिर मेरी नींद सुबह 04 बजे के आस-पास खुली। जब मैं अर्द्ध निद्रा में था, उस समय गुरुदेव ने मुझे दर्शन दिये तो मैं क्या देखता हूँ, गुरुदेव जोधपुर आश्रम के लॉन में घूम रहे हैं तथा सफेद धोती पहने हुऐ हैं, साथ में सफेद कुर्ता पहन रखा है व नीले कलर की हवाई चप्पल पहन रखी हैं, उन चप्पलों के किनारे लाल थे। गुरुदेव बहुत हृष्ट-पुष्ट, सूर्य के समान उज्ज्वल चेहरे के साथ जल्दी जल्दी लॉन में घूमते हुये दिखाई दिये, इसके बाद गुरुदेव आश्रम के हॉल में तखत पर आकर सिद्ध-आसन पर बैठ गये।
  • फिर मैंने गुरुदेव के चरण पकड़ कर रोते हुये कहा,कि गुरुदेव आपने अपने शिष्यों का कष्ट हर लिया है, इसलिए शिष्यों के कारण आपने अपना स्वास्थ्य खराब कर लिया है, और आप बीमार हो गये हो, फिर मैं रोते रहा, इसके बाद गुरुदेव ने मुझे आशीर्वाद दिया और सिद्ध आसन पर बैठ कर अपना रूप श्री कृष्ण रूप में परिवर्तित कर मुझसे कहा, कि मैं ही कृष्ण हूँ, मैं ही कृष्ण हूँ। मैंने उनके चरण स्पर्श किये और आशीर्वाद प्राप्त किया।

  • इसके बाद मेरी नींद खुल गयी और मैंने मेरी पत्नि को जगाया और सारी बात बतायी। उसके बाद लगभग 5.00 बजे सुबह जोधपुर आश्रम फोन किया और फोन पर मैंने गुरुजी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि गुरुजी ठीक हैं।

  • इसके बाद मुझे एक आनन्द की मादकता सी आ गयी जो आज तक लगातार बनी हुयी है, और मन में पूर्ण निष्ठा हो गयी कि गुरुजी ने अपना स्वरूप बताकर यह सिद्धकर दिया कि - मैं ही कृष्ण हूँ। अन्यत्र कहीं जाने की जरूरत नहीं है।

  • अतः गुरुदेव के शिष्य व साधक कितने भाग्यशाली हैं जिनको साक्षात् श्रीकृष्ण के अवतारी गुरुजी मिले हैं, इसलिये हम सभी को गुरु जी के बताये हुये मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करना है। ऐसे परमेश्वर गुरु को बारंबार प्रणाम करता हूँ।

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