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गुरु का पद ईश्वर से भी महान
19 सितंबर 1997
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

वैदिक धर्म अर्थात् हिन्दू-धर्म में 'गुरु का पद', ईश्वर से भी महान् माना गया है। इस संबंध में गुरुगीता में कहा हैः

    गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः ।
    गुरुरेव साक्षत् परब्रह्म तस्मैः श्रीगुरवे नमः ॥
  • मैं नाथमत का अनुयाई हूँ। मेरे मुक्तिदाता परमश्रद्धेय सद्‌गुरुदेव बाबा श्री गंगाईनाथजी योगी आईपंथी नाथ थे। कलियुग में नाथ मत के आदिगुरु योगेन्द्र श्री मत्स्येन्द्रनाथ जी महाराज माने गए हैं। मैं उन्हीं के आदेश से पश्चिमी जगत् में ज्ञान क्रान्ति का नेतृत्व करूँगा।

  • भारत, इस समय घोर तामसिकता में डूबा हुआ है। भारत के उत्थान के लिए सर्व प्रथम ‘रजोगुण’ के विकास की आवश्यकता है। व्यावहारिक भाषा में भारतीयों की प्रथम आवश्यकता 'रोटी' की है, 'राम' का स्थान द्वितीय स्थान पर है।

  • पश्चिमी जगत्, भौतिक सुविधाएँ भोगते-भोगते बहुत ही दुःखी हो चुका है। आज जितना अशांत पश्चिमी जगत है, उतना अशांत संसार का कोई देश नहीं। आज उन्हें मात्र शांति की ही भूख बाकी बची है। और शांति केवल राम अर्थात् ईश्वर तत्त्व ही दे सकता है। क्योंकि यह काम केवल वैदिक धर्म अर्थात् हिन्दू-धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों के अनुसार जीवन जीने से ही संभव है अतः मुझे कलियुग के आदिगुरु से आदेश मिला है कि मेरा कार्य विशेष रूप से पश्चिमी जगत् को चेतन करने का है। उसी आदेश के कारण अब मैं प्राथमिक रूप से पश्चिमी जगत् में कार्य करना चाहता हूँ।

  • 21वीं सदी, मानव जाति के पूर्ण विकास का समय है, और पूर्ण विकास की क्रियात्मक विधि केवल भारत ही जानता है अतः अब भारत का कार्य प्रारम्भ होता है।

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