
संसार की पूर्ण व्यवस्था पूर्व निश्चित व्यवस्था के अनुसार होती है
9 अगस्त 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक
संसार भर के प्राणी जो कुछ करते आ रहे हैं और आगे किस को क्या करना है, यह सब पूर्व निश्चित है। त्रिगुणमयी माया से भ्रमित हुआ मानव स्वयं को कर्ता मानकर जन्म-मरण के चक्कर में फंसा हुआ है।
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प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।
अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताऽहमिति मन्यते ॥
|| गीता - 3:27 ||(हे अर्जुन ! वास्तव में ) संपूर्ण कर्म प्रकृति के गुणों द्वारा किये हुए हैं। (तो भी)अहंकार से मोहित हुए अन्तः करणवाला पुरुष मैं कर्ता हूँ, ऐसा मान लेता है।
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ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति ।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥
|| गीता - 18:61 ||हे अर्जुन! शरीररूप यन्त्र में आरूढ़ हुए संपूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से भरमाता हुआ, सब भूत प्राणियों के हृदय में स्थित है।
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तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् ।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥
|| गीता - 11:33 ||
द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथाऽन्यानपि योधवीरान् ।
मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ॥
|| गीता - 11:34 ||
इससे तू खड़ा हो (और) यश को प्राप्त कर (तथा )शत्रुओं को जीतकर धन-धान्य से सम्पन्न राज्य को भोग (और) यह सब (शूरवीर) पहले से ही मेरे द्वारा मारे हुए है। है सव्यसाचिन ! (तू तो ) केवल निमित्तमात्र ही हो जा। द्रोणचार्य और भीष्मपितामह तथा जयद्रथ और कर्ण तथा और भी बहुत से मेरे द्वारा मारे हुए शूर वीर योद्धाओं को तू मार (और) भय मत कर। निःसन्देह (तूं) युद्ध में वैरियों को जीतेगा, इसलिए युद्ध कर।
गीता के तीसरे अध्याय के 27वें श्लोक में भगवान ने स्पष्ट कहा है:
इसे और स्पष्ट करते हुए भगवान ने गीता के 18 वें अध्याय के 61 वें श्लोक में कहा है:
इस सम्बन्ध में गीता के 11वें अध्याय के 33वें और 34वें श्लोक में भगवान् ने कहा है:
ईश्वर का अवतार तामसिक सत्ता के विनाश के लिए ही होता है। तीसरे विश्वयुद्ध में दो तिहाई जनसंख्या खत्म होने का स्पष्ट अर्थ है कि श्रीअरविन्द की घोषणा के अनुसार 24.11.1926 को पृथ्वी पर श्रीकृष्ण का अवतरण हो चुका है।