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दुःख-सुख की अनुभूति ही जीवन है
24 मार्च 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

संसार का हर परिवर्तन पूर्व निर्धारित है । इसी प्रकार प्रत्येक प्राणी का जन्म से मृत्यु पर्यन्त सारा जीवन पूर्व निर्धारित व्यवस्था द्वारा संचालित होता है। वह परमसत्ता जीव को भरमाती हुई अपनी इच्छा से चलाती है।

    भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में इस सन्दर्भ में स्पष्ट कहा है:

  • ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति ।
    भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥
    || गीता - 18:61 ||

  • इस सम्बन्ध में भगवान कृष्ण ने गीता में स्पष्ट रूप से संसार की व्याख्या करते हुए कहा है:

  • कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।
    ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥
    || गीता - 11:32 ||

    तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् ।
    मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥
    || गीता - 11:33 ||

    द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथाऽन्यानपि योधवीरान् ।
    मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ॥
    || गीता - 11:34 ||

  • गीता के उपयुक्त श्लोकों से स्पष्ट हो जाता है कि उस परमसत्ता की इच्छा के बिना संसार में पत्ता भी नहीं हिल सकता है। मुझे आराधना के दौरान ऐसी असंख्य घटनाओं का पूर्वाभास हुआ और सभी भौतिक रूप से सत्यापित हुई। बहुत सी ऐसी घटनाएँ जो अभी तक मेरे जीवन में घटी नहीं, मेरा ध्यान अधिक आकर्षित किया। मुझे किसी भी घटना के घटने का निश्चित समय नहीं बताया जाता था। केवल आगे घटने वाली घटना का सही दृश्य टेलीविजन की तरह दिखा दिया जाता है। ऐसी घटनाएँ, पूर्व जन्म तथा इस जन्म, दोनों से सम्बन्धित होती थीं। जिज्ञासावश मैंने उन घटनाओं का समय जानने के लिए ध्यान को केन्द्रित करके आराधना प्रारम्भ कर दी। चन्द दिनों में उत्तर मिला कि जो होना है, पूर्व निश्चित है उसके लिए समय और शक्ति का दुरुपयोग क्यों कर रहे हो?

  • सुख-दुख की अनुभूति ही तो जीवन है। जीवन में होने वाली सभी बातें स्पष्ट मालूम होने पर सुख-दुःख की अनुभूति खत्म हो जायेगी। इस प्रकार जीवन पूर्णरूप से नीरस हो जायेगा। इस प्रकार उस गुलाबी पर्दे की स्थिति (हटने की) हो जायेगी। अतः यह निरर्थक प्रयास क्यों कर रहे हो ? अतः मैंने निश्चित समय मालूम करने का प्रयास बन्द कर दिया । संसार एक स्वप्न है। दुःख-सुख की अनुभूतियाँ मात्र त्रिगुणमयी माया का खेल हैं। इस संसार में विचरण करते हुए कोई भी जीव इसके प्रभाव से वंचित नहीं रह सकता। ईश्वर की इस माया से कोई भी प्राणी बच नहीं सकता।

    - समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • परन्तु जो जीव संत सद्‌गुरु की शरण में चला जाता है, उसके बन्धन धीरे-धीरे कटने लगते हैं। माया की पकड़ से वह जीव एक ही जन्म में छुटकारा पाकर आज्ञाचक्र को भेद कर सत्तलोक में अनायास ही प्रवेश कर जाता है। इस तरह के जीव को संसार के दुःख-सुख अधिक प्रभावित नहीं कर सकते हैं क्योंकि वह जीव माया के क्षेत्र को लांघ जाता है। इसलिए माया भी उसकी चेरी बनकर उसको रोकने के स्थान पर ऊपर की तरफ आरोहण करने में मदद करती है।

  • संत सद्‌गुरु द्वारा प्राप्त किए हुए प्रकाश प्रद शब्द के सहारे वह जीव निर्विघ्न, निरन्तर उस परमसत्ता के नजदीक जाता रहता है। इस प्रकार से संसार के असंख्य जीव, जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पा जाते हैं। श्री अरविन्द ने स्पष्ट कहा है "एक सम्पूर्ण आध्यात्मिक जीवन में हर वस्त के लिए अवकाश होता है। अतः इस युग के धर्म गुरुओं द्वारा खींची गई काल्पनिक लक्ष्मण रेखा एक भ्रम है। स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, सही-गलत की व्याख्या संसार के जीवों को भ्रमित कर रही है।

  • गीता का सही अर्थ अर्जुन से बढ़कर किसी को मालूम नहीं हो सका। भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने मुख से पूर्ण भेद बताते हुए अपनी दिव्य दृष्टि देकर अपने विराट स्वरूट का दर्शन कराते हुए, संसार का पूर्ण और सच्चा ज्ञान अर्जुन को बता दिया था। गीता का उपदेश समाप्त होने पर अर्जुन ने जो कुछ किया, वही गीता का सही अर्थ है। उसमें त्याग, तपस्या, दान, धर्म, पाप-पुण्य, आदि आधुनिक गुरुओं का कौनसा उपदेश सम्मिलित है? अर्जुन ने जो कुछ किया, संसार के धर्म गुरु इस समय गीता से ठीक उल्टा कार्य करवा रहे हैं।

    - समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

    गीता रूपी ज्ञान की समाप्ति पर भगवान् ने अर्जुन से पूछा :

  • कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा ।
    कच्चिदज्ञानसंमोहः प्रनष्टस्ते धनञ्जय ॥
    || गीता - 18:72 ||

  • इस प्रकार गीता रूपीज्ञान देने के बाद भगवान् ने अर्जुन से पूछा। इस प्रकार पूछे जाने पर अर्जुन ने स्पष्ट कहा :

  • नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत ।
    स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव ॥
    || गीता - 18:73 ||

  • इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया गीतारूपी ज्ञान भी इस युग के प्रभाव से नहीं बच सका। इस युग के धर्म गुरु गीता की व्याख्या इस प्रकार तोड़ मरोड़कर कर रहे हैं कि उसका स्वरूप ठीक उल्टा बना दिया। इसमें हम किसी को दोषी नहीं बना सकते। क्योंकि भगवान् श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि मैं संसार के जीवों को भरमाता हुआ अपनी इच्छा के अनुसार चला रहा हूँ। अन्धेरे के बिना उजाले की कीमत मालूम नहीं हो सकती। दुःख के बिना सुख के आनन्द का आभास नहीं हो सकता।

  • इस समय संसार में फैला घोर अन्धकार स्पष्ट बता रहा है कि उस परमसत्ता का प्रकाश संसार में प्रकट होने ही वाला है। इस सम्बन्ध में महर्षि अरविन्द ने स्पष्ट कहा हैः - "वह ज्ञान जिसे ऋषियों ने पाया था, फिर से आ रहा है, उसे हमें सारे संसार को देना होगा।"

  • इस प्रकार भारत को संसार में शान्ति स्थापित करने और सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करने हेतु अवश्य खड़ा होना पड़ेगा। मेरी स्वयं की प्रत्यक्षानुभूतियों के अनुसार इस सदी के अन्त तक सारा संसार भारत को धर्म गुरु स्वीकार कर लेगा।

    - समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

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