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बाइबिल में सनातन धर्म की झलक
25 जून 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

बाइबिल को देख कर मुझे ऐसा लगा मानो सनातन धर्म की नकल है। यीशु के उपदेश से हिन्दू संत की झलक मिलती है। हिन्दू दर्शन में जिस प्रकार मनुष्य शरीर को ही सर्वोत्तम मंदिर कहा गया है, उसी प्रकार बाइबल में भी यूहन्ना 2:21 में यीशु ने कहा था- "पर यीशु ने अपने शरीर के मन्दिर के विषय में कहा था"। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित उपदेशों को जब पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है कोई हिन्दू संत उपदेश दे रहा है।

  • मत्ती 5:27 "तुम सुन चुके हो कि कहा गया था कि व्यभिचार न करना। परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले, वह अपने मन में उससे व्यभिचार कर चुका।"

  • मत्ती 5:31 "यह भी कहा गया है कि जो कोई अपनी पत्नी को त्याग दे तो उसे त्याग पत्र दे। परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि जो कोई अपनी पत्नी को व्यभिचार के सिवाय किसी और कारण से छोड़ दे तो वह उससे व्यभिचार करवाता है।

  • मत्ती 6:1 से 6:6 तक -

  • "सावधान रहो।तुम मनुष्यों को दिखाने के लिए अपने धर्म के काम न करो, नहीं तो अपने स्वर्गीय पिता से कुछ भी फल न पाओगे। इसलिए जब तू दान करे तो अपने आगे तुरहीन बजा, जैसा कपटी सभाओं और गलियों में करते हैं ताकि लोग उनकी बड़ाई करें, मैं तुम्हें सच कहता हूँ। वे अपना फल पाचुके। परन्तु जब तू दान करे तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, बायां हाथ न जानने पाये। ताकि तेरा दान गुप्त रहे और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।"

    इसी प्रकार सभी धार्मिक कार्यों को गुप्त रूप से करने के आदेश दिये गये है। प्रदर्शन करने से उसका प्रतिफल ईश्वर की तरफ से किसी भी हालत में मिलना सम्भव नहीं है।

  • कल के लिए चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप करेगा। आज के लिए आज ही का दुःख बहुत है।

    - यीशु

    यीशु कहता था आगे क्या होगा? उसकी चिन्ता मत करो।

    इसके अलावा संसार की उत्त्पति के विषय में कहा गया है। यूहन्ना 1:1 से 1:5 -

  • "आदि में शब्द था, और शब्द परमेश्वर के साथ था, और शब्द परमेश्वर था।यही आदि में परमेश्वर के साथ था। सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ, और जो कुछ उत्पन्न हुआ, उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई। उसमें जीवन था और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति थी।ज्योति अन्धकार में चमकती थी और अन्धकार ने उसे ग्रहण नहीं किया।"

  • इसी प्रकार प्रायःसभी सिद्धान्त मेल खाते हैं। परन्तु जैसा संसार के सभी धर्मों में हुआ, ईसाइयों ने भी धर्म के सभी नियम भंग कर दिये। विवाह सम्बन्धों के बारे में तो वे पूर्णरूप से अतिवादी हो गये। हर स्त्री और पुरुष की तीन चार शादी होना और त्यागना आम बात है। यीशु ने जिसे व्यभिचार की संज्ञा दी है, वह सिद्धान्त तो पूर्ण रूप से त्याग दिया गया है। जितना धार्मिक सिद्धान्तों का अतिक्रमण पश्चिमी जगत् में हुआ है और कहीं नहीं हुआ है। भारत में फिर भी किसी हद तक धार्मिक मर्यादाओं का पालन हो रहा है। भले ही संसार के लोग हमें रूढ़ीवादी कहें, हमारा देश अभी चारित्रिक दृष्टि से बहुत ठीक है।

  • संसार के सभी धर्म सीमा लांघ चुके हैं, केवल भौतिक तरक्की से अगर संसार में शान्ति हो सकती तो पश्चिमी जगत् में पूर्ण शान्ति होनी चाहिए थी, परन्तु इसके विपरीत उन देशों में सबसे अधिक अशान्ति है। हमारे देश में भी बड़े-बड़े शहरों में पश्चिम की नकल, जहाँ जितनी अधिक है वहाँ उतनी ही अशान्ति अधिक है। जो क्षेत्र इस हवा से बचा हुआ है,वहाँ का जीवन अधिक शान्त है। अब तो पश्चिम के लोग केवल शान्ति की खोज के लिए प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में भारत आ रहे हैं।

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