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काम, क्रोध तथा लोभ नरक के द्वार हैं
26 अप्रेल 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

श्रीकृष्ण ने उपर्युक्त तीनों वृत्तियों (काम, क्रोध तथा लोभ) को नरक का द्वार कहा है।

    भगवान ने ऐसी आसुरी प्रकृति वाले मनुष्यों की व्याख्या करते हुए कहा है :

  • अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः ।
    मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः ।। (16:18)

    अहंकार, बल, घमंड, कामना, और क्रोधादि के परायण हुए, दूसरों की निन्दा करने वाले पुरुष अपने और दूसरों के शरीर में (स्थित) मुझ अन्तर्यामी से द्वेष करने वाले हैं।

  • तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान् ।
    क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ।। (16:19)

    उन द्वेष करने वाले पापाचारी (और) क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बारम्बार आसुरी योनियों में ही गिराता हूँ। हे अर्जुन, वे मूढ़ पुरुष जन्म-जन्म में आसुरी योनि को प्राप्त हुए, मेरे को न प्राप्त होकर, उससे भी अति नीच गति को प्राप्त होते हैं।

  • त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।
    कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ।। (16:21)

    काम, क्रोध तथा लोभ यह तीन प्रकार के द्वार आत्मा का नाश करने वाले हैं, इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए।

  • हे अर्जुन, इन तीनों नरक के द्वारों से मुक्त हुआ पुरुष अपने कल्याण का वरण करता है, इससे (वह) परम गति को जाता है। इसके बावजूद इस समय युग के गुण धर्म के कारण प्रायः संसार के मनुष्य आसुरी वृत्तियों से ग्रस्त है। अपना खून ही स्वयं को काटने को तैयार है। एक ही पिता के पुत्र एक दूसरे के प्राणों के प्यासे हैं। ऐसा घोर अन्धकार जब भी संसार में हुआ है तो उस परमसत्ता को अवतरित होना ही पड़ा है। इस सम्बन्ध में संसार के बहुत से संत पुरुष भविष्यवाणियाँ कर चुके हैं।

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