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प्रत्यक्षानुभूति या साक्षात्कार की बात धार्मिक ग्रन्थों तक ही सीमित क्यों?
28 फरवरी 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक
प्रत्यक्षानुभूति या साक्षात्कार की बात आज कल के कोई धर्माचार्य करते ही नहीं। ईश्वर के नाम की महिमा तो खूब करते हैं। तर्क शास्त्र और शब्द जाल के आधार पर ईश्वर की नित्य नई व्याख्या करके लोगों को बौद्धिक दृष्टि से नित्य नया व्यायाम करवाते रहते हैं। इस प्रकार उलझाने वाली प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। ऐसी पक्की धारणा लोगों के दिलों में बैठा रखी है कि यह काम इतना कठिन है कि कई जन्मों के लगातार प्रयास से ही कुछ प्राप्त किया जा सकता है। एक जन्म में तो किसी प्रकार भी सफलता पाना सम्भव नहीं है। इस प्रकार संसार के असंख्य लोग व्यर्थ में अपना मनुष्य जीवन, निर्जीव और बहिर्मुखी आराधना में नष्ट कर रहे हैं।
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संत सत्गुरु नानक ने ईश्वर नाम की महिमा गाते हुए एक कदम और आगे बढ़कर कहा है-
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अगर उपर्युक्त बात सत्य है तो धर्माचार्य संसार के लोगों को उस नाम खुमारी का आनन्द क्यों नहीं दिला रहे हैं? या तो संत सत्गुरु नानक और कबीर गलत कह गये हैं, या आधुनिक गुरु सही नहीं है। दोनों में से एक सत्य है। उस परमसत्ता से जुड़े बिना न तो साक्षात्कार और प्रत्यक्षानुभूति सम्भव है और न ही नाम खुमारी। उस परमसत्ता का साक्षात्कार हुए बिना सब झूठा है। तर्क, बुद्धिचातुर्य, प्रदर्शन, शब्द जाल, बहिर्मुखी आराधना और अन्धविश्वास उस परमसत्ता से जुड़ने में कोई सहयोग नहीं कर सकते। ये सब कृत्रिम तरीके विपरीत दिशा में ले जाते हैं।
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निर्जीव पदार्थ अपने आप में सजीव का भला बुरा करने की शक्ति बिल्कुल नहीं रखते हैं। केवल सजीव और चेतन शक्ति ही सब कुछ करने में सक्षम है। मेरी प्रत्यक्षानुभूति के अनुसार संसार में इस समय सात्त्विकता का प्रायः अभाव हो चला है। तामसिक पक्ष में भी कोई प्रबल शक्तिशाली सत्ता नजर नहीं आ रही है। आध्यात्मिकता के नाम पर तुच्छ वाममार्गी लोग, सस्ते चमत्कार और नाटक दिखाकर भ्रमित कर रहे हैं। दोनों ही पक्षों में ऐसा शक्तिहीन समय किसी युग में नहीं आया। हर युग में सात्त्विक सत्ता का पलड़ा भारी रहा, परन्तु तामसिक पक्ष भी हर युग में सात्विक सत्ता को ललकारता रहा। परन्तु इस समय संसार की जो स्थिति हैं, ऐसा शून्यकाल कभी नहीं आया। सात्त्विक शक्तियाँ मृतप्रायः हो चुकी हैं, परन्तु इसी प्रकार तामसिक शक्तियाँ भी अन्तिम स्वांस ले रही है। ऐसा शक्ति संतुलन कभी नहीं बिगड़ा।
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त्रेतायुग से सात्त्विक शक्तियों का ह्रास प्रारम्भ हुआ था। इस समय उनका सूर्य अस्त हो चुका है परन्तु इसके विपरीत जब मैं देखता हूँ कि तामसिक शक्तियों का भी सूर्य अस्ताचल तक पहुंच चुका है, तो मुझे महर्षि अरविन्द की भविष्यवाणी शत प्रतिशत सत्य होती नजर आती है।
नाम अमल उतरै न भाई ।
और अमल-छिन-छिन चढ़ि उतरै,
नाम अमल दिन बढ़े सवायो ।
- संत कबीर
भांग धतूरा नानका, उतर जाय परभात ।
नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन रात।
संत सत्गुरु नानक
24 नवम्बर 1926 को श्रीकृष्ण का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। श्रीकृष्ण अतिमानसिक प्रकाश नहीं हैं। श्री कृष्ण के अवतरण का अर्थ है, अधिमानसिक देव का अवतरण जो जगत् को अतिमानस और आनन्द के लिए तैयार करता है। श्रीकृष्ण आनन्दमय हैं। वे अतिमानस को अपने आनन्द की ओर उद्बुद्ध करके विकास का समर्थन और संचालन करते हैं।
- श्री अरविन्द
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जब अन्धकार खत्म होने लगता है तो हम समझ जाते हैं कि अब सूर्योदय होने वाला है। ठीक उसी प्रकार जब मैं देखता हूँ कि तामसिक सत्ता अपने अन्तिम स्वांस ले रही है, उसकी ठीक वही स्थिति है जो सूर्योदय के समय प्रकाश शून्य होते हुए तारों की होती हैं। ज्यों ही भगवान् भास्कर अपनी किरणों का प्रकाश फैलाते हैं, सभी तारे यथा स्थिति रहते हुए भी अदृश्य हो जाते हैं। उनके प्रकाश का संसार में कोई अस्तित्व नहीं रह जाता है। जब मुझे यह नजारा प्रत्यक्ष दिखाया जाता है तो मुझे पक्का विश्वास हो जाता है। ऊषाकाल के बाद सूर्योदय में जितनी देर लगती है, ठीक उतनी ही देरी अब उस परमसत्ता के प्रकट होने में है। फिर अरविन्द की यह भविष्यवाणी सच्ची हो जायेगी - "एशिया जगत्-हृदय की शान्ति का रखवाला है। योरोप की पैदा की हुई बीमारियों को ठीक करने वाला है। योरोप ने भौतिक विज्ञान, नियंत्रित राजनीति, उद्योग, व्यापार आदि में बहुत प्रगति कर ली है।अब भारत का काम शुरू होता है। उसे इन सब चीजों को अध्यात्म शक्ति के अधीन करके धरती पर स्वर्ग बसाना है। “