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उत्थान और पतन प्रकृति का अटल नियम है।
28 मार्च 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

कालचक्र अबाध गति से निरन्तर चलता ही रहता है। यही कारण है कि संसार की हर वस्तु में, क्षण-क्षण में परिवर्तन हो रहा है।

    है। भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता के चौथे अध्याय के पाँचवे श्लोक में अर्जुन से स्पष्ट कहा है-

  • बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।
    तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप ।। (4:5)

    हे अर्जुन! मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं। हे परंतप! उन सब को तू नहीं जानता है, मैं जानता हूँ।

  • अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् ।
    प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया ।। (4:6)

    (मैं) अविनाशी स्वरूप अजन्मा होने पर भी, सब भूत प्राणियों का ईश्वर होने पर भी, अपनी प्रकृति को अधीन करके योगमाया से प्रकट होता हूँ।

  • यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।। (4:7)

    हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ।

  • परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
    धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।। (4:8)

    साधु पुरुषों का उद्धार करने और दूषित कर्म करने वालों का नाश करने के लिए, तथा धर्म स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट होता हूँ।

  • उपर्युक्त श्लोकों से स्पष्ट होता है कि सत्युग, त्रेता, द्वापर और कलियुग की आवृति अनादि काल से चली आ रही है। बहुत बार हिरण्यकष्यप, रावण और कंस आदि जन्म चुके हैं और बहुत बार ईश्वर अवतरित हो चुके हैं। यह क्रम अनादिकाल से निरन्तर चला आ रहा है। इस प्रकार चारों युगों की आवृति बहुत बार हो चुकी है।

  • भगवान् श्रीकृष्ण के यह कहने का कि मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं, का स्पष्ट अर्थ निकलता है कि ऐसे महाभारत युद्ध बहुत बार हो चुके हैं। इससे महर्षि श्री अरविन्द की यह भविष्यवाणी सत्य प्रमाणित होती है कि, "24 नवम्बर 1926 को श्री कृष्ण का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था।" हर युग के अंत में जब धर्म का रूप विकृत हो जाता है और संसार अंधकार से ढक जाता है तो वह परमसत्ता स्वयं प्रकट होकर संसार से तामसिक वृत्तियों का नाश करके अपनी सात्त्विक सत्ता स्थापित करके पुनः अपने लोक में प्रविष्ट हो जाती है। यह क्रम संसार में निरन्तर चलता रहेगा।

श्रीकृष्ण आनन्दमय हैं। वे अतिमानस को अपने आनन्द की ओर उद्बुद्ध करके विकास का समर्थन और संचालन करते हैं।

- श्री अरविन्द

  • इस युग के सभी धर्मों के धर्माचार्यों ने भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों को अलग-अलग बाँट रखा है। एक कृत्रिम लक्ष्मण रेखा द्वारा दो भागों में बाँट दिया। एक क्षेत्र का दूसरे में हस्तक्षेप पूर्णरूप से वर्जित कर रखा है।

  • भौतिक विज्ञान के जनक, अध्यात्म विज्ञान पर ऐसे वर्ग ने अपना अधिकार स्थापित कर रखा है जो कि इसका कुछ भी ज्ञान नहीं रखता। इस अनधिकृत अतिक्रमण ने ही संसार को गहन अंधकार में डाल रखा है। इस युग में भौतिक रूप से पूर्ण विकसित देशों में भी ऐसे तथाकथित धर्म गुरुओं का साम्राज्य है। धन के बदले में हर पाप से मुक्ति प्राप्त करने के प्रमाण पत्र तक दिये जा रहे हैं। इस प्रकार संसार भर के साधु पुरुष भयंकर कष्ट में फंस चुके हैं। ऐसा लगता है, भगवान श्रीकृष्ण ने जिस समय अपने प्रकट होने का ‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत’ कह कर बताया है, वह बहुत निकट है।

  • संसार में जो नर संहार और भयंकर रूप से तामसिक वृत्तियों का एकछत्र शासन हो चला है, स्पष्ट करता है कि वह परमसत्ता प्रकट होने ही वाली है। इस सम्बन्ध में संसार के अनेक संत भविष्यवाणियाँ कर चुके हैं। यीशु मसीह ने भी इस सदी के अन्त तक उस सत्य की आत्मा के प्रकट होने की बात कही है। यीशु ने कहा था "मेरा जाना तुम्हारे लिए अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊँ, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आयेगा, परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा।"

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