युग परिवर्तन
4 जुलाई 1997
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक
युग परिवर्तन का संबंध सम्पूर्ण मानव जाति के पूर्ण विकास से है। वैदिक दर्शन के अनुसार दसवें अवतार के अवतरित होकर अन्तर्धान होने के साथ ही कलियुग का अंत होकर सत्ययुग प्रारम्भ हो जाएगा।
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अवतारवाद का सिद्धान्त केवल वैदिक दर्शन अर्थात् हिन्दू-दर्शन की देन है। वैदिक दर्शन के अनुसार अवतारवाद का संबंध मानव जाति के क्रमिक विकास से है। प्रत्येक अवतार के साथ मानव क्रमिक रूप से विकसित होता है। इस प्रकार दसवें अवतार के अवतरण के कारण सम्पूर्ण मानव-जाति पूर्णता को प्राप्त कर लेती है।
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हिन्दू दशावतारों की शृंखला अपने आप में मानो क्रमिक विकास का रूपक है।
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सर्वप्रथम मत्स्यावतार हुआ है जिसके माध्यम से जल में जीवों की सृष्टि हुई।
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फिर पृथ्वी व जल स्थल-जलचर कच्छप का अवतरण हुआ।
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तृतीय वाराह अवतार के साथ पृथ्वी पर पशु-पक्षियों की सृष्टि हुई।
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चौथा नरसिंह अवतार - पशुओं व मनुष्यों के मध्य की स्थिति को स्पष्ट करता है।
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इसके बाद मनु, वामन, परशुराम, राम, और कृष्ण आदि अवतरित हुए जो निरन्तर प्राणमय-राजसिक से सात्विक-मानसिक, मानस और अधिमानस तक ले जाने के माध्यम बने। इस प्रकार श्रीकृष्ण तक नौ अवतारों का अवतरण हो चुका है।
महर्षि श्री अरविन्द की घोषणा के अनुसार दसवाँ अवतार भारत की पुण्य भूमि पर 24 नवम्बर 1926 को अवतरित हो चुका है। उस व्यक्ति ने 42 वर्ष की उम्र में अर्थात् 1968 में आध्यात्मिक चेतना का कार्यक्रम प्रारम्भ कर दिया तथा अगले 50 वर्षों तक सम्पूर्ण विश्व में ज्ञानक्रान्ति ला देगा। इस प्रकार सन् 2019 से सत्ययुग आरम्भ हो जाएगा।
- समर्थ सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग
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युग परिवर्तन का मूल सिद्धान्त है, तामसिक वृत्तियों का संहार। इतिहास इसका साक्षी है कि तामसिक शक्ति मृत्यु स्वीकार कर लेती है परन्तु परिवर्तन को स्वीकार नहीं करती। अतः युग परिवर्तन का स्पष्ट अर्थ है, घोर नरसंहार। उससे बचना असंभव है। इस युग का मानव उस भयंकर विनाश से बचने के जितने ही बौद्धिक प्रयास कर रहा है, वह उतना ही तेजी से उस विनाश की तरफ बढ़ रहा है, फिर भी कुछ नहीं समझ पा रहा है। 21वीं सदी का प्रथम दशक विश्व के महाविनाश का समय है। इस काल में मानवजाति का जितना संहार होगा, उतना सृष्टि के प्रारम्भ काल से लेकर आज तक नहीं हुआ और न कभी होगा। इस महाविनाश के साथ ही युग परिवर्तन हो जावेगा।
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सन् 2020 में तो केवल पूर्ण मानव ही संसार में शेष रहेगा। परन्तु प्रभु की माया का खेल देखो, मानव को कुछ भी आभास नहीं हो रहा है। मानवता की गिरावट की यह पराकाष्ठा है। मानवता में ऐसी गिरावट आज तक कभी देखने में नहीं आई।