भारत का भाग्योदय होने ही वाला है
4 फरवरी 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक
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भगवान् श्री कृष्ण ने गीता के चौथे अध्याय में अर्जुन को युग-युग में स्वयं प्रकट होने का स्पष्ट संकेत किया है। संसार में जब धर्म का लोप हो जाता है, तब भगवान् दुष्टों का विनाश करने और संत लोगों का कल्याण करके पुनः संसार में धर्म स्थापित करने के लिए युग-युग में अवतार लेते हैं।
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पैगम्बर यानि संत लोग संसार में प्रकट हो कर अपनी आध्यात्मिक शक्ति और त्याग के द्वारा सात्विक चेतना फैलाने का कार्य करते हैं। संतों के उपदेशों से जब काम चलना बन्द हो जाता है और संसार में पूर्ण रूप से तामसिक शक्तियों का साम्राज्य स्थापित हो जाता है, ऐसी स्थिति में भगवान् अवतार लेते हैं। संसार भर से पर्ण रूप से तामसिक शक्तियों का सफाया करके और सात्त्विक शक्तियों का एक छत्र साम्राज्य स्थापित करके स्वयं अपने धाम को पधार जाते हैं।
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संसार में पूर्ण शांति और सात्त्विक शक्तियों का साम्राज्य भगवान् के अवतार के बिना सम्भव नहीं है। स्वयं अवतार लेने से पहले कुछ ऐसे संतों को भेजते हैं जो भगवान् के अवतार के सम्बन्ध में भविष्यवाणियाँ करते हैं। ठीक इसी प्रकार की भविष्यवाणियाँ संसार भरके विभिन्न धर्मों के संत काफी समय से करने लगे हैं। मोटे तौर पर सभी एक ही बात कहते हैं कि वह शक्ति भारत के उत्तर भागसे प्रकट होकर अपने क्रमिक विकास के साथ इस सदी के अन्त तक पूरे संसार को अपनी तरफ आकर्षित कर लेगी।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम् ।। (4:7)
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।। (4:8)
- भगवद गीता
संसार भर के सभी धर्मों के लोग उसकी तरफ इतने आकर्षित होंगे कि सबका ध्यान उस शक्ति पर केन्द्रित हो जायेगा। सारे संसार के लोग उसके आदेशों का पालन करने लगेंगे। इस प्रकार 21 वीं सदी में संसार भर में इस शक्ति के प्रभाव से सात्त्विक शक्तियों का साम्राज्य स्थापित हो जायेगा और भारत पुनः अपने जगद्गुरु के पद पर आसीन होकर मानव मात्र (जीव मात्र) के कल्याण हेतु कार्य प्रारम्भ कर देगा।