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स्नेह निमंत्रण
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

मैं प्रारम्भ में ही कह चुका हूँ कि जब तब मनुष्य शरीर-रूपी ग्रन्थ को पढ़ने का दिव्य विज्ञान संसार में प्रकट नहीं होगा, विश्व में शांति असम्भव है। कलियुग के गुणधर्म के कारण अन्धकार विश्व में ठोस बनकर जम गया है। संपूर्ण विश्व में कमोबेश एक जैसी ही स्थिति है। ईश्वर में विश्वास रखने वाले सच्चे और ईमानदार लोगों का जीना बड़ा कठिन है। सबसे अधिक दुःख तो इस बात का है कि धार्मिक संस्थाओं पर ही अविश्वासी-नास्तिकों का कब्जा है।

  • मैं जब तक अन्तर्मुखी होकर आराधना करता रहा, मैंने इस संबंध में किसी से बात नहीं की। सन् 1967 से लेकर 1983 तक मैं निरन्तर आराधना में लगा रहा। 31 दिसम्बर 1983 को जब मेरे संत सदगुरुदेव बाबा श्री गंगाई नाथ जी योगी ब्रह्मलीन हो गये, तब उनके आदेश के कारण मुझे सार्वजनिक रूप से प्रकट होना पड़ा। मुझे भारी आशा थी कि आध्यात्मिक जगत् के लोग इस सच्चाई को जानकर बहुत प्रसन्न होंगे,परन्तु मेरी आशाएँ निराशा में बदल गईं। मैं इस संबंध में किसी भी संस्था का नाम नहीं लेना चाहता हूँ। परन्तु विश्व स्तर की संस्थाओं ने मोटे तौर पर एक ही उत्तर दिया- 'माल चाहे अन्दर आपका हो, ब्राण्ड तो हमारा ही रहेगा।'

  • मैं इससे भारी निराश हुआ और मैंने गुरुदेव की समाधि पर जाकर प्रार्थना की- ‘‘प्रभु आपने मुझे गलत चुन लिया। आप किसी संन्यासी या ब्राह्मण को शक्तिपात द्वारा अधिकार दे जाते तो आसानी से स्वीकार कर लिया जाता। आप अपनी माया वापस लेकर किसी और को दे दो। दो दिन तक कोई उत्तर नहीं मिला। तीसरे दिन आदेश हुआ कि 'देने लेने का काम तो पंच भौतिक शरीर तक ही सीमित है। सगुण साकार रूप में यह कार्य किया जाता है। तुझे इस बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए कि कौन मानता है, कौन नहीं। तू तो आसन लगाकर बैठ जा। बाकी काम जिसका है, वह स्वयं करेगा।"

  • अतः साढ़े छह साल पहले ही, आदेश के अनुसार सेवानिवृत होकर आसन लगाकर बैठ गया। मैंने किसी धर्म के दार्शनिक ग्रन्थ का अध्ययन नहीं किया। जीवन में रोटी के लिए इतना संर्घष करना पड़ा कि और किसी बात की तरफ ध्यान दे ही नहीं सका। जिस प्रकार छोटे बच्चे को डरा धमका कर पढ़ाया जाता है, उसी प्रकार अपने शरीर रूपी ग्रन्थ को ही पढ़ाया गया। सन् 1984 में सेवानिवत्ति से पहले उसी प्रकार बाइबिल के विशिष्ट-2 संदर्भो को देखना पड़ा। मैंने सिर्फ 'बाइबिल' शब्द ही सुना था। मेरी जानकारी के अनुसार वह ईसाइयों का धार्मिक ग्रन्थ था। परन्तु हिन्दी अनुवाद में गलती के कारण से जब मुझे छानबीन करनी पड़ी तो पता लगा कि बाइबिल भी दो है, और दोनों एक दूसरे से बिलकुल भिन्न। खैर, मैं अब अंधकार में नहीं हूँ।

मुझे उस परमसत्ता ने सब कुछ दिखा और समझा दिया है। मुझे क्या करना है, कब करना, और कैसे करना है, सब कुछ समझाया और दिखाया हुआ है। इसके अतिरिक्त आज भी पग-पग पर पथ-प्रदर्शन और दिशानिर्देश मिलते रहते हैं। इसीलिए मैं प्रारंभ में ही लिख चुका हूँ कि, मैं किसी भी धर्म के व्यक्ति का दिल नहीं दुखाना चाहता हूँ, परन्तु इस पथ पर चलना मेरी मजबूरी है।

- समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • मुझे बाइबिल के विचित्र-विचित्र संदर्भो को मूर्तरूप से बहुत ही आश्चर्यपूर्ण ढंग से दिखाया गया। उनमें से जिन पर लिखा जाना संभव था, मैंने लिखकर समझाने का प्रयास किया। परन्तु मैं पहले ही लिखा चुका हूँ कि यह रहस्यपूर्ण ग्रन्थ है, इसके प्रायः संदर्भ प्रत्यक्षानुभूति और साक्षात्कार से ही समझ में आ सकते हैं। इस संदर्भ में, मैं दो बातों का ही वर्णन करना चाहूँगा, जिन्हें लिखकर समझाया जाना पूर्णरूप से असंभव है।

  • वे संदर्भ निम्न प्रकार हैं:- (1.) प्रेरितों के कार्य 2:33, सेन्ट जॉहन के प्रकाशित वाक्य 12:5 तथा 12:11। ये ऐसे संदर्भ हैं कि उनकी प्रत्यक्षानुभूति और साक्षात्कार को दो शब्दों द्वारा समझा पाना पूर्ण रूप से असंभव है। इनका अर्थ तो वह परमसत्ता अपनी भाषा में ही बाइबिल के मनीषियों को जब समझावेगी, तभी समझ में आ सकेगा। मेरे माध्यम से जो कुछ करवाया जा रहा है, वह इतना आश्चर्यजनक है कि इन पर सहज में विश्वास होना बहुत कठिन है। दूसरा अध्यात्म जगत् के लोगों की साख संसार भर में इतनी गिर चुकी है कि सभी लोग उनके हर कार्य को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। ऐसी स्थिति में अध्यात्म जगत् में काम करना जितना कठिन है, उसकी मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी।

  • यह पूर्ण सत्य है कि कलियुग के गुणधर्म के कारण विश्व भर में, जीवन के हर क्षेत्र में झूठे और नकली लोगों का ही अधिक प्रभाव है। सच्चे-झूठे की पहचान कर पाना आम मनुष्य की सामर्थ्य से बाहर है। परन्तु यह ईसाई जगत् की मजबूरी है कि इस सदी के अन्त से पहले सत्य को ढूँढ़कर स्वीकार करना ही पड़ेगा, क्योंकि वह पवित्रात्मा छाती ठोककर कह गया है, कि पृथ्वी और आकाश टल सकते हैं परन्तु मेरी बातें कभी नहीं टलेगी। (Heaven and earth shall pass away, but my word shall not pass away ) इस समय विश्व में धर्म एक व्यवसाय का रूप ले चुका है। चन्द लोगों ने धार्मिक जगत् पर एकाधिकार कर लिया है। वे इन सुविधाओं को छोड़ने के लिए कभी तैयार नहीं होंगे, परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं हो सकता कि विश्व में होने वाला परिवर्तन रुक जाएगा। कालचक्र अनादिकाल से अबाधगति से चलता आया है और चलता जाएगा।

  • मेरे पास कई धार्मिक व्यक्ति आते हैं। जब वे धरातल पर खड़े होकर बात करते हैं, तो सच्चाई को स्वीकार कर लेते हैं परन्तु कुछ उग्र प्रकृति के लोग कह देते हैं – “आप किस-किस को समझाओगे, हम तो इन भेड़ों की ऊन इसी प्रकार काटते रहेंगे।’’ ऐसे यथा स्थितिवादी लोग हर युग में होते आए हैं, जिन्होंने परिवर्तन को आखिरी दम तक स्वीकार नहीं किया। रावण, कंस, दुर्योधन आदि कई उदाहरण हैं, परन्तु कालचक्र सब को निगल गया और ऐसा ही हर युग में होगा भी। अतः मैं सफलता या असफलता से बिलकुल प्रभावित नहीं होता। देव-दानव का यह संघर्ष मनुष्य के अन्दर अनादिकाल से चलता आया है और चलता रहेगा। क्रमिक उत्थान-पतन प्रकृति का अटल सिद्धान्त है। मैं किसी धर्म विशेष की बात नहीं करता हूँ। कलियुग के गुणधर्म के कारण प्रायः सभी धर्म एक ही स्थिति में हैं। मैं कर्ता मात्र उसी परमसत्ता को मानता हूँ। संसार के सभी लोगों को वह अपनी इच्छा से भ्रमित करते हुए, नचा रहा है।

  • ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति ।
    भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।। (18:61)

    - भगवान श्री कृष्णा

    ‘हे अर्जुन ! शरीर रूपी यन्त्र में आरूढ़ हुए, संपूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर, अपनी माया से भरमता हुआ, सब भूत प्राणियों के हृदय में स्थित है।'

  • अतः यह विषय किसी भी धर्म और धर्माचार्य की आलोचना करने का है ही नहीं। मात्र धर्म का व्यवसाय करने वाले लोग ही, संसार के लोगों को अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए आपस में लड़ा रहे हैं। अत: मैं संसार के सभी धर्मों के सकारात्मक लोगों को सच्चाई जानने के लिए सप्रेम आमन्त्रित करता हूँ। मैं अच्छी प्रकार समझ रहा हूँ कि मेरे माध्यम से जो शक्ति, ईश्वर कृपा और मेरे संत सदगुरुदेव की अहेतु की कृपा के कारण प्रकट हो रही है, सार्वभौम है। उस पर किसी भी धर्म विशेष, जाति विशेष या देश विशेष का एकाधिकार नहीं है।

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