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यहूदियों! अब करुण पुकार का समय है।
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

कालचक्र अनादिकाल से अबाध गति से चलता आया है और चलता रहेगा। युग परिवर्तन प्रकृति का अटल सिद्धान्त है। ईश्वर समय-समय पर संपूर्ण विश्व में संतों को पैदा करके शान्ति स्थापित करता है परन्तु जब तामसिक वृत्तियाँ बहुत प्रबल हो जाती हैं और संतों के उपदेश का कछ भी प्रभाव नहीं होता है, वरन वे संत पुरूषों को तंग ही नहीं करती हैं, उनके प्राण तक ले लेती हैं, ऐसी स्थिति में उस परमसत्ता को उन दुष्ट वृत्तियों का संहार करने के लिए स्वयं अवतार लेना होता है। क्योंकि तामसिक वृत्तियाँ निर्दयी और क्रूर होती हैं अतः वे लड़ाई किए बिना कभी नहीं मानतीं।

  • अतः युग परिवर्तन की प्रथम शर्त है, नरसंहार। इतिहास साक्षी है, ऐसा हर युग में परिवर्तन के समय हुआ है। यीशु ने भी युग परिवर्तन की स्पष्ट शब्दों में घोषणा की है। युग परिवर्तन में जो भयंकर नरसंहार होगा उसका वर्णन करते हुए उसने कहा है सेंट मार्क १३:१९से २० – “क्योंकि वे दिन ऐसे क्लेश के होंगे कि सृष्टि के आरम्भ से जो परमेश्वर ने सृजी है अब तक न तो हुए और न कभी होंगे।और यदि प्रभु उन दिनों को न घटाता तो कोई भी प्राणी नहीं बचता, परन्तु उन चुने हुओं के कारण, जिनको उसने चुना है, उन दिनों को घटाया है। "

  • यीशु ऐसे ही अंधकारपूर्ण युग में प्रकट हुआ। उस समय तामसिक वृत्तियों ने प्रभु के मंदिर में भी व्यभिचार और पापों का अड्डा बना रखा था। यीशु ने ज्योंही उन वृत्तियों का विरोध करना प्रारम्भ किया कि वे क्रोधित हो उठीं। उन्होंने अकारण ही उस पवित्रात्मा को मृत्यु दण्ड दिलवा दिया। उसका दोष मात्र यही था कि उसने कह दिया कि मैं ईश्वर का पुत्र हूँ। इसी संदर्भ में उसने उस समय के धर्माचार्यों से कहा कि अगर मेरी बात असत्य है तो जो चमत्कारपूर्ण कार्य प्रभु ने मेरे से करवाये, आप लोगों में से कोई करके दिखा दे। परन्तु फिर भी उस समय के क्रूर धर्म-गुरु नहीं माने और उस निर्दोष को मृत्यु दंड दिलवा दिया।

  • जब उस निर्दोष के प्राण लिए गए तो प्रकृति बहुत ही कुपित हुई। इस संबंध में बाइबिल में लिखा है- 'दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अंधेरा छाया रहा। तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा 'एली' एली, लमा शबक्तनी? अर्थात् हे मेरे परमेश्वर ! तूने मुझे क्यों छोड़ दिया? जो वहाँ खड़े थे, उनमें से कितनों ने यह सुनकर कहा, यह तो एलियाह को पुकारता है। औरों ने कहा ठहरो एलियाह उसे बचाने आता है कि नहीं। धर्माचार्यों ने उस समय खुशियाँ मनाई। उन्होंने कहा देखते हैं मंदिर ढहाने वाला और तीन दिन में बनाने वाला क्रूस पर से उतर कर अपने आप को बचा ले। इसी प्रकार महामायाजक भी शास्त्रियों सहित आपस में ठट्टे से कहते थे, कि उसने औरों को बचाया और अपने आप को नहीं बचा सकता। इजराइल का राजा अब क्रूस पर से उतर आए कि हम विश्वास करें।'

यीशु की भविष्यवाणी के अनुसार इस युग के अंत के समय भी प्रकृति वही रूप धारण करेगी, जो कुपित होकर उस महान् आत्मा की मृत्यु के समय धारण किया था। इस भविष्यवाणी का समय ज्यों-ज्यों पास आ रहा है, तामसिक वृत्तियाँ भयभीत हो रही हैं। प्राण तो सभी को प्यारे होते हैं। उस निर्दोष पवित्र आत्मा ने तीन बार औंधे मुँह गिरकर प्राण रक्षा के लिए कैसी करुण पुकार की थी, परन्तु फिर भी क्या उसके प्राण बचे सके? इसी प्रकार भविष्यवाणी के अनुसार इस युग का अंत होगा और उन वृत्तियों को उनकी करनी का दंड मिलेगा। प्रभु के घर न तो देर है और न अंधेर ही। पाप का घड़ा भरने पर ही फूटता है। यह प्रभु की पूर्व निश्चित व्यवस्था है,जो कि अटल है।

- समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • आज विश्वभर में प्रभु का सुसमाचार सुनाने वालों के कानों में उस पवित्र आत्मा के ये करुण शब्द कि 'आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है' क्या नहीं गूंजते? इन शब्दों में इतनी प्रबल शक्ति है कि धनबल और जनबल के सहारे धर्म का प्रचार-प्रसार करने वाले मठाधीशों की नींद हराम हो जाएगी। रोग एक नहीं कई लगे हैं। बाइबिल बारम्बार उस पीढ़ी के अंत की बात कहती है, जो युग परिवर्तन के समय होगी। इस संबंध में पीटर के ३:३ से ८ एवं १० से १३ में स्पष्ट शब्दों में कहा है- 'और यह जान लो कि अंतिम दिनों में हंसी ठट्टा करने वाले लोग आएँगे, जो अपनी ही अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे। और कहेंगे, उसके आने की प्रतिज्ञा कहाँ गई? क्योंकि जब से बाप दादा सो गए हैं, सब कुछ ऐसा ही है, जैसा सृष्टि के आरंभ से था। वे तो जानबूझकर भूल गए हैं कि परमेश्वर के शब्द (वचन) के द्वारा आकाश प्राचीन काल से वर्तमान है, और पृथ्वी भी जल से बनी और जल में स्थिर है। इन्ही के द्वारा उस युग का जगत्, जल में डूब कर नाश हो गया था। पर वर्तमान काल के आकाश और पृथ्वी उसी वचन के द्वारा इसलिए रखो कि जलाए जाएँ, और वह भक्तिहीन मनुष्यों के न्याय और नाश होने के दिन तक ऐसे ही रखे रहें।' 'परन्तु प्रभु का दिन चोर की नाई' आएगा, उस दिन आकाश बड़ी हड़बड़ाहट के शब्द के साथ जाता रहेगा, और तत्त्व बहुत ही तप्त होकर पिघल जाएँगे, और पृथ्वी और उस पर के काम जल जाएँगे। तो जब ये सब वस्तुएँ इस रीति से पिघलने वाली हैं, तुम्हें पवित्र चाल-चलन और भक्ति में कैसे मनुष्य होने चाहिए। और परमेश्वर के उस दिन की किस रीति से बाट जोहनी चाहिए और उसके जल्द आने के लिए कैसा यत्न करना चाहिए, जिसके कारण आकाश आग से पिघल जाएँगी, और आकाश के गण बहुत ही तप्त होकर गल जाएँगे। पर उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नये आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं, जिसमें धार्मिकता वास करेगी।'

  • यहूदियों को मात्र यीशु ने ही श्राप नहीं दिया था, जिसका वर्णन पहले किया जा चुका है, बल्कि परमेश्वर का भी 'भारी श्राप' दिया हुआ है। इस संबंध में मलाकी ३:८से १० में कहा है- “क्या मनुष्य परमेश्वर को धोखा दे सकते हैं? देखो! तुम मुझको धोखा देते हो, और पूछते हो कि हमने किस बात में तुझे लुटा? दसमांश और उठाने की भेंटों में। तुम पर भारी श्राप पड़ा है क्योंकि तुम मुझे लूटते हो वरन सारी जाति ऐसा करती है।"

  • युग परिवर्तन के बारे में पुराने नियम में भी जगह-जगह भविष्यवाणियाँ की हुई हैं। इस संबंध में मलाकी ४:१से ३ “क्योंकि देखो वह धधकते भट्टे का सा दिन आता है, जब सब अभिमानी और सब दुराचारी लोग अनाज की खूटी बन जाएँगे, और उस आने वाले दिनों में, वे ऐसे भस्म हो जाएँगे कि उनका पता तक न रहेगा, सेनाओं का यहोवा का यही वचन है।"

  • बाइबिल के अनुसार मूसा और यीशु का समय, व्यवस्था का युग था। यीशु ने जिस सहायक के भेजने की प्रतिज्ञा की है, जब वह प्रकट होकर पवित्रात्मा का बपतिस्मा (शक्तिपात-दीक्षा) देकर संसार भर के लोगों पर अनुग्रह करना प्रारंभ कर देगा, तब व्यवस्था का युग समाप्त हो जाएगा। इस संबंध में यीशु ने भी सैंट मैथ्यू ५:१७ एंव १८ कहा है-“यह न समझो कि मैं व्यवस्था या भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूँ। लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ, क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाय, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या एक बिन्दु भी पूरा हुए नहीं टलेगा।' अतः यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के द्वारा स्वर्ग राज्य की घोषणा किये जाने के समय से लेकर मसीह का बादलों में पुनरागमन तक यह व्यवस्था का युग जारी रहेगा (मती ११:१२ एंव लूक १६:१६) अनुग्रह के युग के शुरुआत के साथ ही व्यवस्था समाप्त हो जावेगी।

  • ईसाई जगत् को अनुग्रह के युग की अभी जानकारी नहीं है। वे तो मात्र अपनी पुस्तकों के आधार पर उस युग की कल्पना करते हैं। जब उन पर अनुग्रह होगा,तब वे पूर्ण सत्य से अवगत होंगे। इस संबंध में स्वामी मुक्तानन्द जी ने अपनी पुस्तक 'कुंडलिनी-जीवन का रहस्य' में कश्मीरी शैव सिद्धान्त का वर्णन करते हुए लिखा है- 'कश्मीरी शैव-सिद्धान्त के अनुसार ईश्वर के पंचकृत्य हैं सृष्टि, स्थिति, लय, तिरोधान और अनुग्रह। पाँचवा कृत्य जो अनुग्रह है, उससे मानव को अपनी व विश्व की यर्थाथता का बोध होता है।

  • कश्मीरी शैव-सिद्धान्त में गुरु को पाँचवा कार्य सम्पन्न करने वाला अर्थात् अनुग्रहकर्ता के रूप में माना गया है। शिवसूत्र विमर्शिनी कहती है -

  • 'गुरुर्वा पारमेश्वरी अनुग्रहिका शक्तिः ।

    अर्थात गुरु परमेश्वर की अनुग्रह शक्ति है। वह शक्ति की पुरातन प्रक्रिया द्वारा अनुग्रह प्रदान करता है, जिससे साधक की सुषुप्त कुण्डलिनी क्रियाशील हो जाती है। बाइबिल में जिस पवित्रात्मा के बपतिस्में ' (शक्तिपात दीक्षा) की बात कही गई है जब वह उन्हें मिलने लगेगी, तब ईसाई जगत् को अनुग्रह की वास्तविकता का ज्ञान होगा। इस दीक्षा से २ कुरिन्थियों के ६:१६ में वर्णित सार्वभौम सिद्धान्त के अनुसार मन मंदिर में ही मनुष्यों को उस परमसत्ता की प्रत्यक्षानुभूति और साक्षात्कार होने लगेंगे। ऐसी स्थिति में मानव निर्मित मंदिरों की लोगों को आवश्यकता ही नहीं रहेगी। इस प्रकार उस सहायक के प्रकट होकर शक्तिपात दीक्षा देने के कारण, चर्चों और मंदिरों का अस्तित्व समाप्त होगा, न कि ईश्वर विरोधी और यीशु विरोधी तत्वों के कारण।

  • यह व्यवस्था संपूर्ण विश्व में एक साथ बदलेगी। हे यहूदियों! यीशु और परमेश्वर के भारी श्राप के कारण यहूदी जाति का भारी संहार होने वाला है, उसे ध्यान में रखते हुए करुण पुकार का समय है। उस महान आत्मा ने बहुत दुःखी होकर यहूदियों को कहा था - “तुम्हारा घर तुम्हारे लिए उजाड़ छोड़ा जाता है। क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ कि अब से जब तक तुम न कहोगे कि धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है, तब तक तुम मुझे फिर कभी न देखोगे।’’ दानियेल १२:११एवं १२ को यहूदियों को कभी नहीं भूलना चाहिए। 'जब से नित्य होमबलि उठाई जाएगी, और वह घिनौनी वस्तु जो उजाड़ करा देती है, स्थापित की जाएगी, तब से बारह सौ नब्बे दिन बीतेंगे। क्या ही धन्य है, वह जो धीरज धरकर तेरह सौ पैंतीस दिन के अंत तक भी पहुँचे।' बाइबिल की सभी भविष्यवाणियों के अनुसार वह सहायक 20 वीं सदी के अंत से पहले प्रकट हो जाएगा। संसार में तामसिक वृत्तियाँ इतनी प्रभावी हो चली हैं कि किसी भी धर्म के लोगों को अपने धर्म ग्रन्थ पर थोड़ा भी विश्वास नहीं रह गया है। सभी लोग ऐसा मान कर चल रहे हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं होने जा रहा है। कलियुग की करामात देखो सब की अक्ल को भी अंधा कर दिया है। संत श्री तुलसीदास जी की यह बात पूर्ण सत्य प्रमाणित हो रही है कि 'जाको प्रभु दारूण दुख देहि ताकी मति पहिले हर लेहि।' विश्व के अविश्वासी नास्तिक चाहे संतों की भविष्यवाणियों पर विश्वास करें या न करें, प्रभु की पूर्व निश्चित व्यवस्था में कोई अन्तर नहीं आवेगा। ऐसा हमेशा से होता आया है कि यथास्थितिवादियों ने परिवर्तन को कभी स्वीकार नहीं किया। रावण, कंस, दुर्योधन आदि अनेक उदाहरण है। उनकी जो गति अतीत में हो चुकी वही गति ऐसे लोगों की आगे भी होगी।

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