मसीहा अनिश्चित काल का भूत और भविष्य दिखलायेगा

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यीशु ने अपने अनुचरों से कहा कि सही मसीहा की पहचान का मुख्य लक्षण यह होगा कि वह अपने अनुयाइयों को बपतिस्मा के बाद उन्हें भूत तथा भविष्य की घटनाओं को दिखाने की योग्यता रखेगा। निम्न पर विचार करें:

  • परन्तु जब वह अर्थात सत्य का आत्मा आयेगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बतायेगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा और आने वाली बातें तुम्हे (दिखायेगा) बतायेगा”। लेकिन यह वह है जो भविष्यवक्ता योएल द्वारा कही गई है।

    एक्ट्स २:१६ से २:३३

  • कि परमेश्वर कहता है कि अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उड़ेलूंगा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियाँ भविष्यवाणी करेंगी और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे और तुम्हारे वृद्ध स्वप्न देखेंगे।
  • वरन मैं अपने दासों और दासियों पर भी उन दिनों में अपने आत्मा में से उड़ेलूंगा और वे भविष्यवाणी करेंगे ।
  • इस प्रकार परमेश्वर के दाहिने हाथ से सर्वोच्च पद पाकर और पिता से वह पवित्र आत्मा प्राप्त करके जिसकी प्रतिज्ञा की गई थी, उसने यह उडे़ल दिया है, जो तुम देखते और सुनते हो ।

सम्बद्धता:

  • बहुत से मनुष्य जो गुरुदेव सियाग के सिद्धयोग में शक्तिपात दीक्षा प्राप्त कर चुके हैं ध्यान के दौरान सुदूर पूर्व में घटी घटनाओं एवं भविष्य में घटने वाली घटनाओं को प्रमाणित करते हैं। कुछ ने लिखकर दिया है कि वे अपने पूर्व जन्म देख चुके हैं।

  • एक बार जब तुम सिद्धयोग द्वारा आध्यात्म के मार्ग पर पर्याप्त प्रगति कर लेते हो तो तुम में खास शक्तियाँ विकसित हो जायेंगी जो तुम्हें इस योग्य बना देंगी कि तुम सुदूर पूर्व या भविष्य की झलक पा सको, तुम उन घटनाओं को ऐसे देख सकते हो जैसे तुम टेलीविजन के पर्दे पर उन्हें प्रत्यक्ष होते देख रहे हो ।

    गुरुदेव सियाग

  • गुरुदेव सियाग इशारा करते हैं कि पुराने हिन्दू ऋषि पातंजलि, जो ऐसे पहले ऋषि हैं जिन्होंने योग की विशाल पद्धति के नियम बनाये हैं। वह स्पष्ट रूप से अपनी पुस्तक ‘योग सूत्र‘ में कहते हैं कि एक साधक को प्रातिभज्ञान (अन्तर्ज्ञान की योग्यता) विकसित होना सम्भव है जो गहराई के साथ सुदूर पूर्व तथा भविष्य में देख सकने योग्य बनाता है।

  • उसकी दृष्टि से कुछ भी छिपा हुआ नहीं रहता, वह अत्यन्त अस्पष्ट या अज्ञात पदार्थ को भी तत्काल देख सकता है। वास्तव में, ऋषि पातंजलि आगे कहते हैं कि एक साधक या योगी जिसने अन्तर्ज्ञान की योग्यता प्राप्त कर ली है अपने पाँचों इन्दि्रय जनित ज्ञान का सम्पूर्ण रूप से विकास अनुभव कर सकता है।

  • यह योगी को ईश्वरीय उच्च इन्दि्रयजनित ज्ञान शब्द, स्पर्श, रूप , रस और गंध का अनुभव कराता है। एक योगी के लिये जो इस अवस्था तक पहुँच चुका है ईश्वर केवल कल्पना की वस्तु नहीं रहता वह अत्यन्त विकसित ज्ञानेन्दि्रयों के ज्ञान के द्वारा दिव्यता (देवत्व) अनुभव कर सकता है, एक ऐसी चीज जिसके बारे में एक साधारण मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकता।

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