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सनातन धर्म के मतानुसार संसार की उत्पत्ति को प्रमाणित करना सम्भव है
11 अप्रैल 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

भौतिक विज्ञान की वर्तमान प्रगति ने यथार्थवाद एवं प्रत्यक्षवाद को जितनी तेजी से उकसाया है, आत्मा, परमात्मा, परलोक, पुनर्जन्म एवं कर्म फल जैसे भारतीय दर्शन को उतना ही अमान्य भी किया है। आज हम भारतीयों में भी अपनी संस्कृति, धर्म एवं आध्यात्मिक मान्यताओं में आस्था नहीं रही। उसका कारण भी विज्ञान की यह तीव्र प्रगति ही है।

  • भौतिक विज्ञान और आध्यात्मिक विज्ञान एक दूसरे के सहयोगी हैं। प्रगति की इस दौड़ में भौतिक विज्ञान अपने जनक आध्यात्मिक विज्ञान से बहुत आगे निकल गया। आध्यात्मिक धर्मगुरुओं को इस तथ्य को स्वीकार करके अपनी कमजोरी को दूर करने के प्रयास करने चाहिए थे, परन्तु उन्होंने यह हिम्मत नहीं दिखाई। इसके विपरीत सभी धर्मों के धर्मगुरु पलायनवादी हो गये, और दोनों क्षेत्रों को कृत्रिम लक्ष्मण रेखा से दो भागों में विभक्त कर दिया। अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए एक के बाद एक झूठ बोलते ही चले गए। इस प्रकार झूठ का अम्बार लगा दिया। एक तरफ झूठ का अम्बार दूसरी तरफ सच्चाई का अम्बार, ऐसी स्थिति में सहयोग की कल्पना करना ही असम्भव है।

  • सच्चाई के सामने झूठ ठहर ही नहीं सकता, यही कारण है कि आज संसार भर के सभी धर्म बहुत ही दयनीय स्थिति में पहँच गये हैं। जब तक इस सच्चाई को स्वीकार करके, उस क्षेत्र का शुद्धिकरण नहीं कर लिया जाता है, रोग का उपचार असम्भव है। भौतिक विज्ञान के क्षेत्र के लोग इतने सच्चाई प्रिय हैं कि ज्योंही आध्यात्मिक जगत् ने सच्चाई के रास्ते पर चलकर प्रमाण देना प्रारम्भ किया उन्होंने उनका अनुसरण करना प्रारम्भ किया। भौतिक विज्ञान जगत् के लोग बहुत चेतन हैं, हर सच्चाई को स्वीकार करने में बिल्कुल ही नहीं हिचकिचाते।

  • संसार में जो नरसंहार और अशान्ति फैल रही है, वह इसी असन्तुलित व्यवस्था की देन है। भौतिक विज्ञान की जनक आध्यात्मिक शक्ति ज्यों ही अपने असली स्वरूप में प्रकट हई कि भौतिक सत्ता उसके सामने नतमस्तक हुई। ज्यों ही संत की यह स्थिति हुई, महर्षि अरविन्द की भविष्यवाणी सत्य हो जायेगी। संसार में जितने भौतिक साधन प्रकट किये जा चुके है, उन सबका उपयोग अगर केवल सृजन के रूप में ही किया जाय तो संसार में घी-दूध की नदियाँ बहने में कोई देर नहीं लगेगी। इस प्रकार श्री अरविन्द की भविष्यवाणी सत्य होने में देर नहीं लगेगी।

एशिया जगत् हृदय की शान्ति का रखवाला है, योरोप की पैदा की हुई बीमारियों को ठीक करने वाला है। योरोप ने भौतिक विज्ञान, नियंत्रित राजनीति, उद्योग, व्यापार आदि में बहुत प्रगति कर ली है। अब भारत का काम शुरू होता है। उसे इन सब चीजों को अध्यात्म शक्ति के अधीन करके धरती पर स्वर्ग बसाना है।

- श्री अरविन्द

  • मेरी प्रत्यक्षानुभूतियों के अनुसार आध्यात्मिक जगत् की अनेक समस्याएँ भौतिक विज्ञान की तरह प्रमाण सहित सुलझाई जा सकती हैं। मैं देखा रहा हूँ, आध्यात्मिक दृष्टि से जो लोग मुझ से जुड़ रहे हैं, उन्हें सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर आदि की प्रत्यक्षानुभूतियाँ हो रही हैं। हिन्दू धर्म का सिद्धान्त, जिसे श्री अरविन्द ने सही प्रमाणित किया है, उसी रास्ते से चलने पर अनेक प्रकार की प्रत्यक्षानुभूतियाँ हो रही हैं।

  • ईश्वर यदि है तो उनके अस्तित्व को अनुभव करने का, उनका साक्षात् दर्शन प्राप्त करने का कोई न कोई पथ होगा, वह पथ चाहे कितना ही दुर्गम क्यों न हो, उस पथ से जाने का मैंने दृढ़ संकल्प कर लिया है। हिन्दू धर्म का कहना है कि अपने शरीर के, अपने भीतर ही वह पथ है, उस पर चलने के नियम भी दिखा दिये हैं। उन सबका पालन करना मैंने आरम्भ कर दिया है। एकमास के अन्दर ही अनुभव कर सका हूँ कि हिन्दू धर्म की बात झूठी नहीं है। जिन-जिन चिह्नों की बात कही गई है, मैं उन सब की उपलब्धि कर रहा हूँ।

    - श्री अरविन्द

  • बिल्कुल ठीक इसी पथ से चलकर मेरे से सम्पर्क करने वाले लोगों को इसी प्रकार की अनेक उपलब्धियाँ हो रही हैं। मूलाधार से अगम लोग तक की सभी अनुभूतियाँ मुझे गुरुदेव के रहते हो चुकी थी, परन्तु उस समय मुझ से जुड़ने वाले किसी को ऐसी अनुभूति नहीं होती थी। 31.12.1983 को गुरुदेव का स्वर्गवास होने के बाद मेरे अन्दर एक विचित्र प्रकार का परिवर्तन आ गया। इसके बाद मुझसे जुड़ने वाले सभी लोगों को वे अनुभूतियाँ अनायास होने लगती हैं जो मुझे बहुत पहले हो चुकी हैं। इस विचित्र स्थिति का जब मैंने अन्तर्मुखी होकर पता लगाया तो मालूम हुआ कि यह सारा चमत्कार गुरुदेव के शक्तिपात के कारण हो रहा है। जैसा कि मुझे बताया गया, कोई शक्ति संसार के कल्याण के लिए मेरे माध्यम से प्रकट हो रही है।

  • तुम्हें उठना है ताकि तुम दुनिया को उठा सको। वह ज्ञान जिसे ऋषियों ने पाया था, फिर से आ रहा है, उसे सारे संसार को देना होगा।" इस बात को अधिक स्पष्ट करते हुए भी अरविन्द ने कहा हैः- "क्रम-विकास में अगला कदम जो मनुष्य को एक उच्चतर और विशालतर चेतना में उठा ले जाय, और उन समस्याओं का हल करना प्रारम्भ कर देगा, जिन समस्याओं ने मनुष्य को तभी से हैरान और परेशान कर रखा है, जब से उसने वैयक्तिक पूर्णता और पूर्ण समाज के विषय में सोचना विचारना शुरू किया था। इसका प्रारम्भ भारत ही कर सकता है, और यद्यपि इसका क्षेत्र सार्वभौम होगा तथापि केन्द्रीय आन्दोलन भारत ही करेगा।

    - श्री अरविन्द

  • इस प्रकार की अनुभूतियाँ और पथ प्रदर्शन निरन्तर हो रहा है। मुझे उस परमसत्ता ने बहुत से प्रमाण देकर, अच्छी प्रकार समझा दिया है कि संसार के हर परिवर्तन और माध्यम की व्यवस्था पूर्व निश्चित है, उसमें रत्ती भर का भी परिवर्तन असम्भव है। पश्चिमी जगत् ने जो भौतिक प्रगति की है, उसे जब तक आध्यात्मिक सत्ता के अधीन नहीं कर लिया जाता है, संसार में शान्ति असम्भव है।

  • श्री अरविन्द ने स्पष्ट कहा है:

  • "हम देशों और जातियों के पृथक् व्यक्तित्व को मिटाना नहीं चाहते, बल्कि उनके बीच से घृणा, द्वेष और गलतफहमियों की बाधाओं को हटाना चाहते हैं।"

    मुझे संसार भर के देशों में अधिक समय तक कार्य करने की प्रेरणा है, परन्तु पहले कुछ समय तक भारत में ही कार्य करने का आदेश है। "भारत के अन्दर सारे संसार की समस्याएँ केन्द्रीत हो गई हैं और उनके हल होने पर सारे संसार का भार हल्का हो जायेगा।" - श्री मां।

  • मैं देख रहा हूँ, इस क्षेत्र में जो व्यक्ति माध्यम होंगे, वे मुझसे जुड़ने आरम्भ हो गये हैं। निरर्थक लोग अगर आ भी जाते हैं तो या तो भयभीत हो कर या विशेष परिस्थितियों वश मुझसे फिर नहीं मिल सकते। प्रभु की यह बड़ी विचित्र लीला है। कौन व्यक्ति क्या कार्य करेगा, इस सम्बन्ध में भी बहुत ही स्पष्ट दिशा निर्देश मिल रहा है।

  • श्री अरविन्द ने स्पष्ट कहा है:

  • "एक संपूर्ण आध्यात्मिक जीवन में हर वस्तु के लिए अवकाश होता है।"

  • अतः मेरा आध्यात्मिक जीवन कूप मंडूक न होकर, तथ्यों के आधार पर खुली किताब है, जिसे हर मानव पढ़ सकता है। इसमें धर्म और जाति भेद कोई बाधा नहीं है।

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