‘नाम खुमारी’ के सम्बन्ध में गीता क्या कहती है?
28 अप्रेल 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक
हमारे कई संतों ने ईश्वर के नाम की महिमा की है। अपनी-अपनी अनुभूति के अनुसार सभी ने उस परमसत्ता के नाम की महिमा का गुणगान किया है। संत सद्गुरु नानक देव जी ने इस सम्बन्ध में कहा है -
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नाम अमल उतरै न भाई ।
और अमल छिन-छिन चढ़ि उतरै,
नाम अमल दिन बढ़े, सवायो । -
"यह एक आंतरिक आनंद है, जो सभी सच्चे विश्वासिया के हृदय में बना रहता है, सांसारिक आनन्द के समान यह आता-जाता नहीं है। उसका आनन्द पूर्ण है, वह हमारे हृदयों के कटोरों को आनन्द से तब तक भरता है, जब तक उमड़ न जाय।"
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बचपन में जिन चीजों से सुख की अनुभूति होती है, किशोरावस्था में आते ही सुख के आधार बदल जाते हैं। जवानी में उस स्थिति में और आधारभूत परिवर्तन हो जाता है और बुढ़ापा आते ही, बचपन, किशोरावस्था और जवानी में जिन, भिन्न-भिन्न कारणों से सुख की अनुभूति होती थी, उससे बिलकुल भिन्न स्थिति हो जाती है।
भांग धतूरा नानका, उतर जाय परभात ।
नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन रात ॥
संत सद्गुरु नानक देव
संत सत्गुरु कबीर ने भी नाम की महिमा करते हुए कहा है -
इस सम्बन्ध में यीशु के परमशिष्य यहून्ना ने भी स्पष्ट कहा है -
बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् ।
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ।। (5:21)
- भगवान् श्रीकृष्ण
(गीता)
"बाहर के विषयों में आसक्ति रहित अन्तःकरण वाला पुरुष अन्तःकरण में जो भगवत् ध्यान जनित आनन्द है, उसको प्राप्त होता है। वह पुरुष सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा रूप योग में एकीभाव से स्थित हुआ, अक्षय आनन्द को अनुभव करता है।"
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परन्तु इस युग का मानव इसे असम्भव मानता है। युग के गुणधर्म ने संसार में इतना घोर अन्धकार व्याप्त कर रखा है कि सब की बुद्धि भ्रमित हो रही है। अपने ही धर्म के संतों की बात पर लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है। मैं जब नाम खुमारी की बात कहता हूँ तो लोगों को विश्वास नहीं होता है। मैं देखा रहा हूँ कि मेरे साथ आध्यात्मिक सत्संग करने वाले लोगों को इस अक्षय आनन्द की अनुभूति चन्द दिनों में ही होने लगती है। सांसारिक सभी नशों का आनन्द इसके सामने तुच्छ है। अतः सभी प्रकार के नशों से हमेशा-हमेशा के लिए छुटकारा मिल रहा है। यह एक प्रत्यक्ष सत्य है।