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प्रभु की लीला विचित्र है।
8 सितम्बर 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

ईसाइयों की प्रथम सेंट जॉन द्वारा लिखी "जीवन का मार्ग" सन् 1984 में अनायास पढ़ने को मिली। परन्तु बाइबिल में वर्णित बातों की प्रत्यक्षानुभूतियाँ तथा साक्षात्कार बहुत पहले से प्रारम्भ हो गये थे। ‘द न्यू टेस्टामेन्ट’(The New Testament) तो सन् 1986 के अन्तिम दिनों में मिला, इसके बाद सभी तथ्यों का जो बाइबिल में दो हजार साल पहले लिख दिया गया था, कार्यरूप में मेरे माध्यम से परिणित होते हुए, परमसत्ता द्वारा दिखाया गया। बड़ी विचित्र बात है। पश्चिमी जगत् को स्वीकार करने में भारी मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। परन्तु सोने को जंग नहीं लगता। आखिर सच्चाई को स्वीकार करना ही पड़ेगा।

  • आइन्सटीन ने जो सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि अनादिकाल से बोले गये शब्द ब्रह्माण्ड में आज भी मौजूद हैं। वे वैज्ञानिक उपकरण से सुने जा सकते हैं। मैं कहता हूँ, शब्द ही नहीं सभी घटनाओं के दृश्य भी, चाहे वे भूतकाल की है या भविष्य में घटने वाली है, देखे सुने जा सकते हैं। मैं इसे प्रमाणित करने की स्थिति में हूँ। यीशु-मूसा तो कल हुए थे।

  • मैंने एक बार एक दृश्य देखा। मैं किसी सागर को पार करके उसके किनारे पहुँचा। उस सागर में बहुत ऊँची-ऊँची लहरें उठ रहीं थीं। परन्तु उससे बाहर निकलने के लिए जिन चट्टानों पर चढ़ना था, वह इतनी ऊँची थी कि मेरे हाथ की पकड़ से बाहर थी। अचानक क्या देखता हूँ कि एक बहुत ही बलिष्ट व्यक्ति ठीक मेरे ऊपर वाली चट्टान पर आकर खड़ा हो गया और झुककर अपना दाहिना हाथ मेरी तरफ नीचे की ओर बढ़ा दिया। मैंने उसका दाहिना हाथ मेरे दाहिने हाथ से पकड़ लिया और उसके सहारे झूलने लगा। मैंने सोचा वह मुझे खींच कर निकाल लेगा, परन्तु उसने एक इंच भी मुझे ऊपर नहीं खींचा, परन्तु मेरा हाथ मजबूती से पकड़े रहा, छोड़ा नहीं। मैं बहुत परेशान हुआ सोचा क्या किया जाय। फिर मैंने मेरे दाहिने हाथ की ताकत के सहारे मेरे शरीर को संभाला और मेरे बांये पैर को ऊपर किनारे की तरफ बढ़ाया। संयोग से मेरे बांए पैर का अंगुठा ऊपर की चट्टान के ऊपर टिक गया और उस पर शरीर का वजन संभालते हुए दाहिने हाथ की शक्ति से शरीर को ऊपर ढकेलते हुए बाहर आ गया। पहले मुझे बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी कि मुझे बाहर निकलने में सफलता मिल जायेगी क्योंकि ऊपर खड़ा अतिबलिष्ट व्यक्ति मुझे बाहर बिलकुल नहीं खींच रहा था। अतः जब मैं बाहर निकल कर उसके दाहिनी तरफ खड़ा हो गया तो मुझे भारी प्रसन्नता हुई। इसके तत्काल बाद वह दृश्य खत्म हो गया और सभी बातें बाइबिल से मिल कर वैसे ही सही प्रमाणित हो रही हैं जैसा उसमें लिखा है।

  • एक दिन ऊपर के दृश्य की बात याद आ गई और सोचा उक्त दृश्य का अर्थ आज तक समझ में नहीं आया। इस पर मुझे प्रेरितों के काम के 2 : 33 के देखने की प्रेरणा मिली। उसे पढ़कर मुझे भारी अचम्भा हुआ। सोचा परमात्मा किस प्रकार जीवन में होने वाली घटनाओं को निश्चित समय पर अपने द्वारा निश्चित किये हुए तरीके से समझा रहा है। मानवीय बुद्धि जिस बात की कभी कल्पना भी नहीं कर सकती, ईश्वर क्षण भर में उसे सम्भव करके कार्य रूप में परिणित कर देता है।

मुझे भारी अचम्भा हो रहा है। एक बार मैंने ईश्वर से प्रार्थना की थी कि मुझ जैसे साधारण व्यक्ति से ये असम्भव कार्य क्यों करवा रहे हैं? कृपया किसी योग्य और उपयुक्त व्यक्ति को यह कार्य सौंपे। जिसकी संसार में प्रतिष्ठा और सामाजिक मान्यता हो। इस पर मुझे उत्तर मिला कि यह सब तुझे ही करना है, और किसी को नहीं सौंपा जा सकता ।

- समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • अतः अदृश्य सत्ता के इशारे पर संसार में निकल पड़ा हूँ। मुझे न सफलता से खुशी होती है न असफलता से दुःख क्योंकि मैं तो उस सत्ता का दास हूँ, केवल मजदूरी का अधिकारी हूँ, घाटे-नफे से मुझे कोई वास्ता नहीं।

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