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नाम खुमारी एक सच्चाई है, यह कोई काल्पनिक आनन्द नहीं।
1 मार्च 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

मैं देख रहा हूँ, इस युग के मानव जब कबीर और नानक की 'नाम अमल' और 'नाम खुमारी' की बात सुनते हैं, या पढ़ते हैं तो उन्हें इस बात पर बिलकुल ही विश्वास नहीं होता। अपने ज्ञान के अनुसार वे इस बात को ईश्वर के लिए श्रद्धा से काम में लिए हुए अतिशयोक्ति अलंकार के अतिरिक्त कुछ भी मानने को तैयार नहीं। मैं लोगों की इस मान्यता के लिए उन्हें दोष नहीं दे सकता हूँ क्योंकि आध्यात्मिक जगत् में सात्त्विक शक्तियों के ह्रास के कारण ही संसार के मानव की यह स्थिति है।

  • मनुष्य ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप है। उस परमसत्ता की अभिव्यक्ति मात्र इसी योनि से सम्भव है। मानव शरीर में ही वह असीम सत्ता अपने पूर्ण विकसित स्वरूप में स्थित है इसीलिए सभी संतों ने इस योनि को दुर्लभ बताया है। परन्तु युग के गुण-धर्म के कारण असहाय मानव इसका स्वाद नहीं चख पाने के कारण इसको मात्र काल्पनिक या अतिशयोक्ति समझ रहा है।

  • मैंने करीब तीन हजार पर्चे ‘प्रत्यक्षानुभूति और साक्षात्कार’ तथा ‘नाम खुमारी’ के बँटवाये। पर्चे के अन्त में यह बात स्पष्ट रूप से छापी गई थी कि- "जो भी भाई-बहिन प्रत्यक्षानुभूति और नाम खुमारी के सम्बन्ध में अपनी जिज्ञासा शान्त करना चाहें, स्वयं सत्संग में सम्मिलित हो कर देखें।" मुझे यह देख कर अचम्भा हुआ कि स्वामी रामसुख दास जी के प्रवचन सुनने वालों को भी इसका विश्वास नहीं हुआ। मात्र एक जिज्ञासु ही मेरे पास आ सका। परन्तु जो एक जिज्ञासु आया, मैं उससे पूर्ण सन्तुष्ट हूँ। वह इस पथ का राही होना, इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि मात्र भारत में ही उस परमसत्ता की आखिरी चिन्गारी बची हुई है, जिसको प्रज्वलित करके संसार भर में वह सात्त्विक प्रकाश फैलाया जा सकता है।

  • मुझे जो स्पष्ट इशारा था, वह सही निकला कि यह प्रकाश सर्वोच्च लोक से आ रहा है, अतः पहले उन्हीं लोगों को चेतन करेगा। इस प्रकार संसार के शक्ति सम्पन बुद्धिजीवी लोग जब इस प्रकाश से चेतन होंगे तो नीचे इसका प्रकाश सहज ही फैल जायेगा। मेरी प्रत्यक्षानुभूतियाँ और उस परमसत्ता का आदेश ठीक मेल खा रहा है।

देश में जो तमस व्याप्त है, उसके बारे में श्री अरविन्द ने लिखा है-
यह कई कारणों से है। हिन्दुस्तान में अंग्रेजों के आने से पहले ही तामसिक प्रवृतियों और छिन्न-भिन्न करने वाली शक्तियों का जोर हो चला था। उनके आने पर मानो सारा तमस् ठोस बनकर, यहाँ जम गया। कछ वास्तविक काम होने से पहले यह जरूरी है कि यहाँ जागृति आये। तिलक, दास और विवेकानन्द इनमें से कोई भी साधारण आदमी न थे, लेकिन इनके होते हुए भी तमस् बना हुआ है।

- महर्षि अरविन्द


महर्षि अरविन्द की उपर्युक्त बात से यह बात स्पष्ट होती है कि "अन्धकार इतना ठोस बन कर जम गया है कि उस अधिमानसिक देव के अवतरण के अलावा अब इसका कोई इलाज नहीं बचा है।" मेरे विचार से भी इस प्रकाश का सबसे पहले भारत में फैलना जरूरी है।

  • श्री अरविन्द को भगवान् ने अलीपुर जेल से छूटने से पहले जो आदेश दिया था, उसका भी यही अर्थ निकलता है। भगवान् का आदेश था कि- "तुम बाहर जाओ तो अपने देशवासियों को कहना कि तुम सनातन धर्म के लिए उठ रहे हो, तुम्हें स्वार्थ सिद्धि के लिए नहीं, अपितु संसार की भलाई के लिए उठाया जा रहा है। जब कहा जाता है कि भारत वर्ष महान् है तो उसका मतलब है कि सनातन धर्म महान् है।" इससे स्पष्ट है कि संसार को आकर्षित करने के लिए, पहले भारत का उठना, चेतन होना जरूरी है, इसके बिना संसार को चेतन करना बहुत कठिन काम है।

  • हम देखते हैं कि हमारे आम देशवासियों की एक प्रवृति बन गई है कि वे पश्चिमी जगत् की आँख बन्द करके नकल करने में लगे हैं। दूसरी तरफ पश्चिमी जगत के लोग भारत की गलियों की खाक छानते हुए शान्ति की खोज कर रहे हैं। बहुत ही विचित्र स्थिति है। जिस अपार सात्त्विक धन के हम मालिक हैं, उन्हें तो इसका कुछ भी ज्ञान नहीं, और समुद्रों पार से आकर विदेशी उसकी खोज कर रहे हैं, बहुत ही अजीब स्थिति है।

  • मुझे अच्छी तरह याद है, ऋषिकेश में ‘मुनि की रेति’ में गंगा के किनारे मैं खड़ा था। इतने में कुछ विदेशी भगवा वस्त्र पहने, वहाँ आकर खड़े हो गये। थोड़ी ही देर में कोट-पेन्ट धारी कुछ सज्जन सपरिवार वहाँ आ गये। उनमें से एक सज्जन ने अंग्रेजी भाषा में उन विदेशियों से बात शुरू कर दी। क्योंकि मैं भी पास ही खड़ा था, इसलिए मैं भी सुनने लग गया। हिन्दुस्तानी सज्जन ने कहा कि "आप लोग बहुत समझदार और सभ्य लोग हैं, आप इन ठगों के चक्कर में कैसे फँस गये? ये लोग केवल आप लोगों से धन ठगने के लिए, विभिन्न प्रकार के स्वांग रच रहे हैं। इनके पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है, जिसके लिए आप ठगाये जा रहे हो।" इस पर एक विदेशी बोला "आप क्या कह रहे हो, मुझे समझ नहीं आ रहा है। ऐसा लगता है आप पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। क्या आपने इन संन्यासियों के पास आकर कभी जानने का प्रयास किया कि ये क्या कर रहे हैं ? मैं देख रहा हूँ हमारा दैनिक जीवन में जो खर्च होना चाहिए उससे एक पैसा भी अधिक नहीं लिया जा रहा है।"

  • मैं जब हमारे देशवासियों की यह हालत देखता हूँ तो बहुत हैरानी होती है। हमारे देश के सभ्य और साधन सम्पन्न लोग पूर्ण रूप से धर्म से विमुख हो चुके हैं। जब तक उन्हें प्रत्यक्षानुभूति, साक्षात्कार और नाम खुमारी की अनुभूति नहीं करवाई जाती, चेतना असम्भव है। शरीर के जिस अंग में बीमारी होती है, डॉक्टर चीर-फाड़ द्वारा उसी अंग का इलाज करते हैं, तभी पूरा शरीर स्वस्थ होता है। अतः हमें पहले इन्हीं बीमार लोगों का इलाज करना है, तभी चेतना सम्भव है।

  • हम देख रहे हैं, हमारे देश के प्रायः सभी राजनेता, वाम मार्गी तामसिक तांत्रिकों के चक्कर में पड़े हुए हैं। ऐसे अनेक तामसिक तांत्रिक राजसत्ता का भयंकर दुरुपयोग करके अपनी काली शिक्षा का प्रसार-प्रचार करके देश में अन्धकार फैला रहे हैं। इस प्रकार समाज का जो वर्ग इन तामसिक लोगों के चक्कर में है तथा जो इन ढ़ोगियों से तंग आकर धर्म से विमुख हो चुका है, सर्वप्रथम उनका इलाज किये बिना देश में चेतना असम्भव है। पश्चिमी जगत् के लोग सच्चाई को परखने और स्वीकार करने में कभी नहीं झिझकते।

  • सबसे कठिन काम तो पूर्वाग्रह से ग्रस्त तथाकथित सभ्य और सम्पन्न लोगों का इलाज करना है। इनका इलाज होने पर पूरा शरीर स्वस्थ हो जायेगा। सत्ता धारी और इन सम्पन्न और सभ्य लोगों की कोई अधिक संख्या नहीं है।

  • जब वह परमसत्ता सक्रिय रूप से संसार के सामने प्रकट होकर, अपना कार्य शुरू कर देगी, तो अन्धकार के दूर होने में कोई देर नहीं लगेगी। मुझे स्पष्ट बता दिया गया है कि हर परिवर्तन का समय सुनिश्चित है। समय आने पर सारी परिस्थितियाँ अनुकूल होकर थोड़े प्रयास से सारे कार्य सम्पूर्ण हो जायेंगे।

    - समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग


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