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संसार के लोग अध्यात्म से निराश और विमुख क्यों?
26 मार्च 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

हम देख रहे हैं, हर धर्म में ईश्वर के प्रति निराशा और विमुखता इस समय चरम सीमा तक पहुँच चुकी है। संसार के सभी धर्मों के लोगों ने एक प्रकार से धर्मगुरुओं से विद्रोह कर दिया है। भौतिक दृष्टिकोण से विचार करें तो हम पायेंगे कि इसमें वे लोग दोषी नहीं है, जिनका विश्वास धर्म से उठ गया है। युग के गुणधर्म के कारण संसार के सभी धर्मों के धर्माचार्य अपनी आध्यात्मिक शक्ति खो बैठे हैं। वे स्वयं चेतन नहीं हैं।

  • उनका स्वयं का सम्बन्ध उस परमसत्ता से पूर्ण रूप से छूट चुका है। अपनी इस कमजोरी को छिपाने के लिए, इन्हें तरह-तरह के स्वांग रचने पड़ रहे हैं। कई प्रकार के प्रदर्शनों, शब्द जाल और तर्कशास्त्र का सहारा लेना पड़ रहा है। जिस प्रकार निर्जीव प्राणी अपना कुछ भी प्रभाव नहीं दिखा सकता है, ठीक उसी प्रकार इस युग के धर्म गुरुओं के सभी निर्जीव कर्मकाण्ड परिणाम रहित होने के कारण, संसार के लोगों में उस परमसत्ता के प्रति निराशा फैला रहे हैं। इससे तो अगर वे अपनी कमजोरी को खुले रूप में स्वीकार कर लें तो संसार के लोगों को इस निराशा से बचाया जा सकता है। परन्तु जितना वे अपनी कमजोरी को छिपाकर, झूठ के सहारे अपने धन्धे को चलाने का प्रयास और हठधर्मिता करते हैं, विद्रोह निरन्तर तेज होता जा रहा है। इस प्रकार आज सभी धर्मों में स्थिति भयंकर विस्फोटक हो गई है।

  • दूसरी तरफ भौतिक विज्ञान अपनी सच्चाई के कारण संसार के लोगों को अपनी तरफ अधिक आकृषित कर रहा है। झूठ के पैर नहीं होते, यह कहावत इस समय संसार के सभी धर्मों पर लागू हो रही है। अध्यात्मवाद पूर्णरूप से परिणाम रहित हो चुका है। ऐसी स्थिति में जब मानव को प्रार्थना का कोई प्रत्यक्ष उत्तर नहीं मिलता है तो उसका विश्वास खत्म हो जाता है। 'गुरु', ईश्वर और जीव को जोड़ने वाला 'तार' होता है। अगर तार कटा-फटा नहीं है और वह उस परमसत्ता से जुड़ा हुआ है तो जो भी प्राणी उससे जुड़ेगा, उसके अन्दर उस परमसत्ता का प्रकाश हुए बिना नहीं रह सकता। एक बार प्रकाश हुआ कि जीव चेतन हो जाता है। इस प्रकार एक जलता हुआ दीपक असंख्य दीप प्रज्वलित करके संसार से अंधकार दूर कर सकता है।

  • सभी धर्म गुरु कहते हैं कि ईश्वर घट-घट का वासी है, इस प्रकार संसार के सभी दीपकों में तेल और बत्ती है, उसे मात्र प्रज्वलित करने की देर है, सारा संसार उस परमसत्ता के प्रकाश से जगमगा उठेगा। पहला दीपक ही जलना कठिन है। एक प्रज्वलित दीपक पूरे संसार के दीपकों को प्रज्वलित करके संसार के अंधकार को भगाने में सक्षम होता है। अतः एक ही चेतन संत सद्गुरु पूरे संसार के जीवों को चेतन कर सकता है।

संत सद्गुरु का सम्बन्ध उस परमसत्ता से सीधा जुड़ा होता है, अतः उससे जुड़ने वाले सभी जीवों में उस परमसत्ता का प्रकाश प्रज्वलित हो जायेगा। ऐसे संत से जुड़ने पर अगर जीव अपने पापों को अंगीकार करके, उन्हें त्यागने की, ईश्वर से करुण प्रार्थना करे तो तत्काल चमत्कार होता है। ऐसे व्यक्ति के अन्दर से अन्धकार यानि तामसिक वृतियाँ तत्काल हमेंशा-हमेंशा के लिये विदा होकर उनका स्थान सात्विक वृत्तियाँ ले लेंगी।

- समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • इस प्रकार एक ही चेतन संत सद्गुरु से चेतन जीव से जुड़ने वाले सभी जीव, चेतन होते ही चले जायेंगे। जब यह क्रम वह परमसत्ता चला देती है तो पूरे संसार में उस प्रकाश के फैलने में कोई देर नहीं लगती। इस प्रकार से चेतन हुए सभी प्राणियों को प्रार्थना का प्रत्यक्ष जबाव मिलेगा और उनका मन उस परमानन्द से सराबोर हो जायेगा। जब यह आनन्द एक प्राणी में प्रकट हो जाता है तो पूरे संसार के प्राणियों में प्रकट होने में कोई समय नहीं लगता।

  • संसार में युग परिवर्तन अनन्तकाल से चला आ रहा है। यह कालचक्र न कभी रुका है और न रुकेगा। जिस प्रकार रात के बाद दिन और दिन के बाद रात आती ही है, उसी क्रम से युग परिवर्तन भी उस परमसत्ता द्वारा निर्धारित समय पर होगा ही। कोई भी जीव प्राप्त शक्ति और अधिकार को स्वेच्छा से छोड़ना नहीं चाहता है। इसी प्रकार तामसिक वृतियाँ भी अपनी स्थिति संसार में बनाये रखने के लिए संघर्ष करती हैं, परन्तु परिवर्तन आज तक कभी नहीं रुका। तारे कभी नहीं चाहते कि सूर्योदय हो और उनकी सत्ता उनके यथास्थिति बने रहने पर भी समाप्त हो जाय परन्तु फिर भी सूर्योदय हो कर ही रहता है।

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