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जैन धर्म में तप का महत्त्व
5 अक्टूबर 1997
बीकानेर
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

जैनी इच्छाओं का निरोध 'बहिर्मुखी कर्मकाण्ड' से करना चाहते हैं, जो कि असंभव कार्य है। यह कार्य आंतरिक शक्ति के चेतन होने से ही संभव है। आंतरिक शक्ति के चेतन करने की क्रियात्मक विधि केवल वेदान्ती अर्थात् हिन्दू ही जानते हैं। संसार का कोई धर्म और दर्शन मानव के पूर्ण विकास की क्रियात्मक विधि नहीं जानता।

  • जैन धर्म के तीर्थंकर श्री महावीर के अनुसार- अहिंसा, संयम और तप यह धर्म की त्रिवेणी हैं, त्रिपथगा हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार हम जैन धर्म का अध्ययन करें तो हमें ऐसा लगेगा कि इस धर्म को मानने वाले लोगों का विकास अभी तक द्वैतभाव तक ही हुआ है। अभी उन्हें अद्वैत में पहुँचना है।

  • वैदिक धर्म अर्थात् हिन्दू धर्म ही अद्वैतवाद का जनक है।

  • 1.

    अंहिसा अर्थात् ‘ब्रह्म’

  • 2.

    संयम का अर्थ ‘विष्णु’

  • 3.

    तप का अर्थ ‘रुद्र’।

  • इन तीनों के जनक ‘परमतत्त्व’ की प्रत्यक्षानुभूति और साक्षात्कार की बात केवल हिन्दू धर्म ही कहता है। मैं, मेरे व्यावहारिक जीवन में देख रहा हूँ कि जिन युवा जैनों ने मुझसे दीक्षा ली है, उनका विकास जितना तेजी से हुआ है, उतना तेजी से और धर्म के लोगों का नहीं हुआ।

मैं किसी धर्म के व्यक्ति को धर्म परिवर्तन की सलाह नहीं देता हूँ। मेरे सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य किसी भी धर्म में रहते हुए, अपने उच्चतम विकास को प्राप्त कर सकता है। मेरे लाखों शिष्य हैं, उनमें सभी धर्म के लोग हैं, और सभी में एक ही विधि से परिवर्तन आ रहा है।

- समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • मैं मेरे व्यावहारिक जीवन में अनुभव कर रहा हूँ कि आज सभी धर्म मानव विकास की बात तो करते हैं, परन्तु क्रियात्मक विधि नहीं बताते और अगर कोई क्रियात्मक विधि बताना चाहता है तो उस पर विश्वास नहीं करते। 'धर्म' में ऐसा अविश्वास पहले कभी नहीं हुआ।

  • मेरे शिष्यों में युवा लड़के-लड़कियों की संख्या सबसे अधिक है। विज्ञान की उच्च शिक्षा प्राप्त इंजिनीयर, डॉक्टर और अन्य वैज्ञानिकों की संख्या हजारों में है। इनमें सभी जाति और धर्म के युवा सम्मिलित हैं। मैं अनुभव कर रहा हूँ कि उन सभी के उच्चतम धर्माचार्य कुछ बेचैनी अनुभव कर रहे हैं। उन युवाओं में जो विकास हो रहा है, उनके रास्ते में रोड़ा अटकाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।

  • अब मैंने फैसला कर लिया है कि मैं भविष्य में धर्म प्रचार का कार्य पश्चिमी जगत् में करूँगा। "भारत को आज रोटी की जरूरत है, राम की नहीं।"

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