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शांति का संहारक युग
15 मई 2003
मुम्बई
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

इतिहास साक्षी है, इस भूमण्डल पर दो जातियों- हिन्दू और यहूदी पर पिछले लम्बे समय से घोर अत्याचार हो रहे हैं। मेरे विचार से परीक्षित के शासन काल के बाद से यह कुकृत्य निरन्तर चल रहा है। कितने आश्चर्य की बात है, इतने लम्बे समय तक असहनीय कष्टों को भोग रही जातियों ने अपने मूलभूत "अहिंसापरमोधर्मः" के सिद्धान्त को नहीं छोड़ा है। विश्व की सभी जातियों और धर्मों ने अनेक बार उन्हें इस भूमण्डल से जड़ से उखाड़ने की कोशिश की, परन्तु असफल रहे। क्योंकि ये दोनों जातियाँ जिस धर्म पर जिन्दा हैं, वह ईश्वरीय आदेश है, अतः वह अमर है।

  • अमेरिका का यह कहना कि “Islam is a very evil and wicked religion” विश्व को सत्य नहीं लग रहा है। क्या जर्मनी में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एक लाख से भी अधिक यहुदियों की हत्या इस्लाम धर्म के मानने वाले लोगों ने की थी? सम्पूर्ण विश्व साक्षी है, यह कुकृत्य एक ईसाई धर्म को मानने वाले क्रूर और निर्दयी व्यक्ति ने किया था। यीशु को मारने वाली तामसिक शक्तियाँ, यीशु की मृत्यु से लेकर आज तक इस घृणित कार्य में जुटी हुई हैं। परन्तु ये दोनों दयालु जातियाँ, सम्पूर्ण विश्व में आज भी जिन्दा हैं।

  • भारत ने हमेशा यहूदियों को शरण दी है, इतिहास साक्षी है। 16 जनवरी 2003 को यहूदी जाति ने विश्व की सभी क्रूर शक्तियों से बचने के लिए हिन्दू जाति की शरण ले ली। यह तेल अवीव से दीक्षा लेने आई 54 वर्षीय यहूदी महिला का प्रश्न नहीं है। बाइबिल के सिद्धान्त के अनुसार आकाश - तत्त्व पृथ्वी पर उतर आया। दोनों एक दूसरे में लय हो गए। इस प्रकार विश्व की कोई भी शक्ति इन दोनों को कभी भी किसी भी तरह से कभी अलग नहीं कर सकेंगी। भारत का सिद्धान्त शरणागत के बदले अपने प्राणों की बलि देना है।

  • 16 जनवरी 1991 को आरम्भ हुआ कार्य अपने अन्त की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। निश्चित समय सीमा बताकर प्रकृति के कार्य में बाधा डालना पाप है। विश्व में युगों की व्यवस्था है। इस प्रकार आज मानव युग परिवर्तन के संधिकाल में जी रहा है। हमारे दर्शन के अनुसार युग परिवर्तन के समय सम्पूर्ण तामसिक शक्तियों का भौतिक जगत् में अन्त हो जाता है। द्वापर युग का अंत महाभारत की लड़ाई से हुआ।

  • समय-समय पर विश्व की तामसिक शक्तियाँ इस दयालु जाति को भौतिक जगत् से समूल नष्ट करने का निरन्तर प्रयास करती चली आ रही हैं, परन्तु यह जाति आज भी गर्व से जी रही है। यही हाल बेचारी यहूदी जाति का है। 16 जनवरी 2003 को इन दोनों जातियों के मिलन के कारण सम्पूर्ण तामसिक वृत्तियाँ, मृत्यु भय से थर-थर काँप रही हैं। सभी एक दूसरे को दोष देकर आपस में ही मर कट रही हैं। हिंसा का अन्त हिंसा से ही हो सकता है।वही हो भी रहा है।

  • मैं देख रहा हूँ, जल्दी ही दोनों मिल कर एक हुई जाति का सम्पूर्ण विश्व पर एक छत्र राज होगा। मैं संतुष्ट हूँ कि मृत्यु भय से थर-थर काँपने वाली वृत्तियों को मेरी बात पर बिल्कुल ही विश्वास नहीं होगा। ये केवल ‘विश्वास करो, विश्वास करो’ कहना जानती हैं, करना नहीं जानती।

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