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इस युग का मानव अध्यात्म से विमुख क्यों?
6 फरवरी 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

इस युग में, संसार में अध्यात्मवाद की जितनी दुर्गति हो रही है पहले शायद ही कभी हुई है। विचित्र-विचित्र प्रकार के प्रकृति विरोधी आचरणों पर चलना आज के अध्यात्मवादी, सफलता का प्रतीक मानते हैं। कंचन और कामिनी की जो दुर्दशा, इस युग के अध्यात्मवादी कर रहे हैं, वह बड़ी अजीब बात है। जगत् जननी नारी का अध्यात्म विरोधी ऐसा भयंकर रूप प्रदर्शित किया जाता है, जिसे देख कर शर्म से सिर झुक जाता है। अगर नारी न होती तो वे तथाकथित धार्मिक गुरु कहाँ से पैदा होते?

  • धार्मिक ग्रंथों को तर्क बुद्धि के द्वारा तोड़-मरोड़ कर ऐसे प्रस्तुत किया जाता है कि वे पूर्ण रूप से निर्जीव और विकृत हो जाते हैं। दान, पुण्य, त्याग, तपस्या, पाप आदि की ऐसी परिभाषा की जाती है जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है। उदाहरण के तौर पर गीता को ही लीजिए। इस पर अनेक लोगों ने टीकाएँ लिखी हैं। महर्षि अरविन्द जैसे चन्द अध्यात्मवादियों को छोड़ कर सभी ने गीता द्वारा त्याग, तपस्या, दान, पुण्य आदि की शिक्षा खींचतान कर दिलवाने का प्रयत्न किया है। गीता एक ऐसा ग्रंथ है, जो जीवन के हर पहलू पर प्रकाश डालता है। जिस पक्ष का विवेचन किया गया है, उसकी पूर्ण गहराई तक पहुँचा है। इन बातों को तोड़-मरोड़ कर आध्यात्मिक व्यवसाइयों के दिशा-निर्देश पर मनमाने ढंग से गीता की व्याख्या करके सीधे-साधे लोगों को भ्रमित करने का सुनियोजित ढंग से प्रयास किया है। गीता जैसे ग्रंथ का भी दुरुपयोग करने में, ये तथाकथित अध्यात्मवादी नहीं चूके!

  • गीता रूपी ग्रंथ का मंदिर बनने के बाद जब उसमें मूर्ति स्थापित हो चुकी तो अर्जुन ने जो कार्य किया, गीता का सही अर्थ वही था। अर्जुन ने जो कुछ किया, उसमें, त्याग, तपस्या, दान, पुण्य, पाप आदि जो उपदेश आधुनिक अध्यात्मवादी गीता से दिलवाते हैं, इससे कौनसी झलक मिलती है? अर्जुन ने तो यही कहा कि धर्म के बारे में जो भ्रांतियाँ मुझ में थी, वे सभी मिट चुकी हैं। अब मैं निर्भय होकर युद्ध करूँगा। इसी प्रकार सुनियोजित ढंग से सभी धार्मिक ग्रंथों का गलत अर्थ निकाल कर आज के आध्यात्मिक व्यवसायी और गुरु, भोली-भाली जनता का धर्म की आड़ में शोषण कर रहे हैं।

  • कंचन और कामिनी को पापों की जड़ बता कर, स्वयं चोरी छिपे उसका अन्धाधुंध दुरुयोग कर रहे हैं। अध्यात्मवादियों की इन गलत हरकतों के कारण आज के समाज में धर्म विरोधी लोगों की बाढ़ आ गई है। आधुनिक गुरुओं ने धर्म का सम्बन्ध पेट से जोड़ लिया है। येन केन प्रकारेण, धर्म की आड़ में आर्थिक शोषण के नये-नये तरीके अपना कर लोगों को धर्म से विमुख कर रहे हैं। संसार भर के सभी धर्मों से लोगों की आस्था खत्म हुई है, उसमें मुख्य हाथ इन्हीं धर्म गुरुओं का है।

  • कालचक्र अबाध गति से चल रहा है। इसी के अनुसार संसार की हर वस्तु गतिशील है, परन्तु आज के अध्यात्मवादी, 'यथास्थिति' बनाये रखना चाहते हैं। कालचक्र अपनी गति में कोई भी रुकावट बरदाश्त नहीं करता। इसकी गति में रुकावट डालने वाला आज तक कोई नहीं बचा है, फिर इन नकली लोगों की क्या औकात है?

  • इस युग का बुद्धिजीवी और तर्कशील मनुष्य हर काम का परिणाम चाहता है। अब इस युग का मानव केवल शब्द जाल और अन्धविश्वास से भ्रमित होने को तैयार नहीं है। वह परिणाम के बिना कुछ भी मानने को तैयार नहीं है। यही कारण है, इस युग के प्रवचनों और कथाओं में अधिकतर वे ही स्त्री-पुरुष नजर आते हैं, जो अपने जीवन के आखिरी हिस्से में पहुंच चुके हैं। मृत्यु उन्हें सामने खड़ी नजर आती है, ऐसी स्थिति में जीवन में जो बुरे काम किये वे सजीव होकर सामने प्रकट दिखाई देते हैं। अपनी ही इस भयानक आकृति से भयभीत, ये लोग क्या आराधना करेंगे?

  • ईश्वर के पास जाने से तो हर प्रकार का भय दूर भाग जाता है। अतः ये सभी स्त्री-पुरुष अपने पाप रूपी राक्षसों से भयभीत हो कर इन तथाकथित आध्यात्मिक गुरुओं की आड़ लेकर बचने के लिए उनके पास जाते हैं। ये चतुर धर्म गुरु भी इस स्थिति को अच्छी प्रकार समझते हैं। उनकी कमजोरी का लाभ उठा कर वे उनका बहुत अच्छा शोषण करते हैं। इस युग में संसार भर के धर्म गुरुओं की मात्र यही खुराक बची है। ये इस स्थिति का भरपूर लाभ उठा रहे हैं।

  • परन्तु इस युग का युवा इन गुरुओं की यह चाल अधिक दिन, अब नहीं चलने देगा। ऐसी स्थिति में अध्यात्म जगत् में जो स्थान रिक्त होगा, उसकी पूर्ति के लिए कोई ऐसी शक्ति अवश्य प्रकट होगी, जो इस खाली स्थान की पूर्ति करेगी। इस प्रकार इन यथास्थितिवादी नकली गुरुओं का अन्त होकर शुद्ध और सात्त्विक आध्यात्मिक शक्ति का उदय होगा। यह सब कुछ कालचक्र के प्रभाव से होगा, जिससे न आज तक कोई बचा है और न आगे बचेगा।

श्री अरविन्द जैसे अनेक सात्त्विक संतों की भविष्यवाणी कभी गलत नहीं हो सकती। श्री अरविन्द के अनुसार,
वह अतिमानसिक देव अवतार ले चुका है, अतः संसार में अन्धकार का अन्त बहुत निकट है।

- श्री अरविन्द

  • संसार में हर प्रकार की उन्नति में, युवा शक्ति का ही मुख्य योगदान रहता है। हर ज्ञान की शिक्षा का समय किशोर और युवा अवस्था होता है। अतः भौतिक विद्या के साथ-साथ आध्यात्मिक विद्या का भी अध्ययन इसी उम्र में होना चाहिए। हमारे शास्त्र बताते हैं, प्राचीन काल में ऐसा ही होता था। परन्तु इस युग में अध्यात्मवाद के लोप होने के कारण, इस पक्ष की शिक्षा बन्द हो गई। इस प्रकार भौतिक विज्ञान तो अपनी उन्नति के शिखर पर पहुँच गया, परन्तु अध्यात्म विज्ञान के गुरुओं के क्रमिक ह्रास के कारण उसका लोप हो गया।

  • भौतिक सत्ता पर जब तक आध्यात्मिक सत्ता का अंकुश नहीं लगता, भौतिक विज्ञान का उपयोग सुख और शान्ति के लिए नहीं किया जा सकता। यही कारण है, संसार भर के भौतिक रूप से उन्नत देश इस शक्ति का उपयोग मानव जाति के संहार के रूप में कर रहे हैं।

  • श्री अरविन्द ने कहा है-

  • संसार, भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में, अपने उन्नति के शिखर पर पहुंच चुका है, अब अध्यात्म विज्ञान की उन्नति का नम्बर है। एशिया, 'जगत्-हृदय' की शान्ति का रखवाला है। वह उठ रहा है, वह दिन अब दूर नहीं, जब एशिया संसार की भौतिक शक्तियों को अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के अधीन करके, संसार में सुख शान्ति का राज्य स्थापित करेगा। इस काम में भारत की भूमिका मुख्य होगी। इस प्रकार भौतिक और आध्यात्मिक सत्ता के सहयोग से धरा पर स्वर्ग उतर आवेगा।

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