Image Description Icon
सारा संसार एक ही परमसत्ता का स्वरूप है।
14 अप्रेल 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

एक ही सत्ता संसार में विभिन्न रूपों में प्रकट हो रही है। भगवान् कृष्ण ने गीता के 14 वें अध्याय में स्पष्ट करते हुए कहा है-

    सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।
    तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ।।14:4।।

    भगवान श्री कृष्ण

    हे अर्जुन, सब योनियों में जितनी मूर्तियाँ (शरीर) उत्पन्न होते हैं, उन सबकी त्रिगुणमयी माया (तो) गर्भ को धारण करने वाली माता है (और) मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ।

    सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसंभवाः ।
    निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ।।14:5।।

    भगवान श्री कृष्ण

    हे अर्जुन, सत्त्वगुण, रजोगुण (और) तमोगुण ऐसे प्रकृति से उत्पन्न हुए तीनों गुण (इस) अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बांधते हैं।

    तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् ।
    सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ।।14:6।।

    भगवान श्री कृष्ण

    हे निष्पाप, उन तीनों गुणों में प्रकाश करने वाला निर्विकार सत्त्वगुण (तो) निर्मल होने के कारण सुख की आसक्ति से और ज्ञान की आसक्ति से बांधता है।

    रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम् ।
    तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम् ।।14:7।।

    भगवान श्री कृष्ण

    हे अर्जुन, राग रूप रजोगुण को कामना और आसक्ति से उत्पन्न हुआ जान, वह (इस) जीवात्मा को कर्मों की और उनके फल की आसक्ति से बांधता है।

    तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् ।
    प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ।।14:8।।

    भगवान श्री कृष्ण

    और हे अर्जुन, सर्व देहाभिमानियों के मोहने वालो, तमागुण को अज्ञान से उत्पन्न हुआ जान, वह उस जीवात्मा को प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा बांधता है।

    सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत ।
    ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत ।।14:9।।

    भगवान श्री कृष्ण

    हे अर्जुन, सत्त्वगुण सुख में लगाता है, रजोगुण कर्म में, (तथा) तमोगुण तो ज्ञान को आच्छादन करके प्रमाद में भी लगाता है।

    रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत ।
    रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा ।।14:10।।

    भगवान श्री कृष्ण

    और हे अर्जुन, रजोगुण तमोगुण दबाकर सत्त्वगुण (बढ़ता है) हो ता है, तथा रजोगुण सत्त्वगुण को दबाकर तमोगुण (बढ़ाता है) वैसे ही तमोगुण सत्त्वगुण को दबाकर रजोगुण (बढ़ाता है)।

    नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति ।
    गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति ।।14:19।।

    भगवान श्री कृष्ण

    जिस काल में द्राष्टा तीनों गुणों के सिवाय अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता है, और तीनों गुणों से अति परे, मुझ परमात्मा को तत्व से जानता है, उस काल में वह पुरुष मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है।

  • इस प्रकार हम देखते हैं सारा संसार एक ही परमसत्ता का विराट स्वरूप हैं भगवान श्री कृष्ण ने और स्पष्ट करते हुए कहा है-

  • ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति ।
    भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ।।18:61।।

    भगवान श्री कृष्ण

    हे अर्जुन, शरीर रूप यन्त्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को परमेश्वर अपनी माया से भ्रमाता हुआ, सब भूत प्राणियों के हृदय में स्थित है।

  • इसीलिए भगवान् ने अर्जुन को स्पष्ट विश्वास दिलाया है कि-

  • सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
    अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ।।18:66।।

    भगवान श्री कृष्ण

    सर्व धर्मों को त्याग कर केवल एक मुझ परमात्मा की ही अनन्य शरण को प्राप्त हो, मैं तेरे को सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर।

  • इस गीता रूपी अमृत को भी तामसिक वृत्तियों से इतना आच्छादित कर रखा है कि जीव बहुत ही भ्रमित हुआ भटक रहा है। इस समय धर्म और ईश्वर का स्वरूप ऐसा बना दिया गया है कि जीव माया के चक्कर में निरन्तर भटक् रहा है। संसार के प्रायः अधिकतर लोगों का विश्वास धर्म से उठ चुका है। इस युग का मनुष्य, धर्म को ईश्वर के नाम पर चलने वाले व्यवसाय के अतिरिक्त कुछ भी मानने को तैयार नहीं है। सच्चाई धर्म से पूर्ण रूप से लोप हो चुकी है, केवल असत्य का बोलबाला है।

शेयर करेंः