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एक मात्र सजीव शक्ति ही मोक्ष में सहयोगी है।
16 फरवरी 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

संसार में आज तक भौतिक और आध्यात्मिक जगत में जो प्रगति हुई है वह मात्र सजीव और चेतन सत्ता के कारण ही सम्भव हुई है; निर्जीव और अचेतन स्वयं में भला-बुरा कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है। सजीव सत्ता अपनी इच्छा के अनुसार इनका उपयोग जैसा चाहे कर सकती है। भौतिक जगत में आज तक जितनी प्रगति हुई है, वह सब मनुष्य के दिमाग की देन है। वह सजीव चेतन सत्ता मनुष्य के अन्दर बैठी हुई, इस सारे ज्ञान को भौतिक जगत् में प्रकट कर रही है। संसार के मानव ने कुछ समय तक तो इसे मात्र अपनी बुद्धी का ही चमत्कार समझा, परन्तु समय-समय पर उस चेतन सत्ता ने वैज्ञानिकों को ऐसे अद्भुत चमत्कार दिखाए कि उन्हें मानना पड़ा कि कोई ऐसी शक्ति है जरूर जो संसार के मानव का पथ प्रदर्शन कर के विश्व का संचालन कर रही है। इस प्रकार भौतिक विज्ञान के वैज्ञानिक उस परमसत्ता की तरफ आकर्षित हुए। परन्तु अध्यात्म विज्ञान के वैज्ञानिकों की प्रयोगशालाएँ कालचक्र की गहन गति के कारण पूर्ण रूप से लुप्त हो जाने के कारण भौतिक विज्ञान के लोगों को वे कुछ भी सहयोग करने में असमर्थ हैं। इस युग के सभी धर्मों के अध्यात्म विज्ञान के विद्वानों के पास सदियों और युगों पुराने सैद्धान्तिक ग्रन्थ पड़े हुए हैं, परन्तु प्रयोगशालाओं के अभाव में ये सारे ग्रन्थ निरर्थक हैं। ये जिस युग में रचे गए थे मात्र उसी समय के लिए उपयोगी थे। अपने क्रमिक विकास के साथ भौतिक जगत् ने जो प्रगति की है, उसी क्रम से अगर आध्यात्मिक विज्ञान तरक्की करता और भौतिक विज्ञान की तरह नए-नए आविष्कार करते हुए आज के युग के अनुकूल अपनी स्थिति बना लेता, उसी स्थिति में यह संसार के जीवों का भला करने में सक्षम होता।

  • परन्तु आज स्थिति बिलकुल भिन्न है। भौतिक विज्ञान अपनी चरम सीमा के पास पहुँचने का प्रयास कर रहा है और अध्यात्म विज्ञान के वैज्ञानिक अपने ज्ञान को प्रमाणित करने में पूर्ण रूप से असमर्थ है। अपनी ऐसी दयनीय स्थिति को छिपाने के लिए उन्होंने संगठित रूप से प्रयास करने प्रारम्भ कर दिए। कुछ चतुर पूंजीपतियों के साथ मिल कर धर्म को पूर्ण रूप से व्यवसाय बना डाला। तरह-तरह के स्वांग रचकर विभिन्न प्रकार के प्रदर्शनों से संसार के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने लगे। शब्द जाल और तर्क शास्त्र का सहारा लेकर धर्म और ईश्वर की नित्य नई-नई व्याख्या करके लोगों को भ्रम जाल में फंसाने लगे। मृत्यु के बाद नर्क का ऐसा भयानक चित्रण करके लोगों को भयभीत करने लगे। ऐसी निर्जीव वस्तुओं से धर्म को जोड़ दिया जो कभी भी परिणाम दे ही नहीं सकतीं। इस प्रकार मोक्ष के पथ को तेली के बैल की स्थिति में लाकर छोड़ दिया। इस प्रकार संसार के भयभीत लोग इस धार्मिक कोल्हु में जुते हुए अबाध गति से चल रहे हैं। ऐसी स्थिति में क्या परिणाम मिल सकता है? इस प्रकार परिणाम के अभाव में संसार के लोगों ने इन धर्माचार्यों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। आज स्थिति यह है कि कुछ बीमार और कमजोर तथा अपनी जीवन यात्रा के अन्तिम भाग में पहुँचे हुए जर्जरित लोग मात्र इनके शिकार हो रहे हैं। ऐसे भयभीत लोगों को मृत्यु भय दिखा कर ठग रहे हैं। मृत्यु अवश्यम्भावी है, इससे बचना असम्भव है फिर इससे भयभीत होने का कोई मतलब नहीं। परन्तु फिर भी ये शक्तिहीन लोग अपने जीवन के कर्मों को देखकर, अपनी ही तस्वीर से भयभीत हो रहे हैं।

  • ईश्वर आराधना से तो हर प्रकार का भय कोसों दूर भागता है परन्तु यह बात इन्हें बिल्कुल समझ में नहीं आ रही हैं। अपनी ही तस्वीर से ये लोग इतने डर चुके हैं कि इनकी बुद्धी पूर्ण रूप से जबाव दे चुकी है। ऐसी स्थिति में इन कमजोर लोगों के सहारे ये तथाकथित धर्मगुरु कितने दिन जीवित रह सकते हैं? भौतिक विज्ञान के वैज्ञानिकों को जब ऐसे गुरुओं से कुछ भी नहीं मिला तो इन्होंने अपने ही उपकरणों से उस असीम सत्ता की खोज प्रारम्भ कर दी। भौतिक निर्जीव और अचेतन उपकरण उस सजीव और चेतन सत्ता का पता लगाने में किसी भी हाल में सक्षम नहीं हो सकेंगे। शरीर के बाहरी भाग से उस परमसत्ता से मिलना बहुत ही असम्भव है; उस तक जाने का रास्ता तो शरीर के अन्दर से होकर बहुत ही गहन भँवर जालों में से होकर गुजरता है। असंख्य ऐसे चौराहे आते हैं जहाँ से रास्ता चूकने की बहुत अधिक सम्भावनाएँ हैं। ऐसी स्थिति में बेचारे इन भौतिक विज्ञान के सच्चे खोजियों को निराशा के अलावा कुछ भी हाथ लगने वाला नहीं है। धन, समय और शक्ति के दुरुपयोग के अलावा कुछ भी परिणाम नहीं निकलने वाला है।

  • इसके अलावा एक समस्या ऐसी है जिसने इन्हें और भ्रमित कर रखा है; काली विद्या को जानने वाले तामसिक लोग यदाकदा सस्ते और भ्रमित करने वाले चमत्कार दिखाकर पथ भ्रष्ट करने का प्रयास निरन्तर कर रहे हैं। एक तो उनका रास्ता गलत, दूसरा तामसिक शक्तियों का पग-पग पर पथ भ्रष्ट करने का प्रयास, ऐसी स्थिति में उन सच्चाई की खोज करने वाले लोगों का भ्रम और शक्ति व्यर्थ ही खर्च हो रही है। क्योंकि इस युग में तामसिक शक्तियों का एक छत्र साम्राज्य है अतः वे कभी भी ऐसी सात्विक और चेतन सत्ता की खोज को सफल होने देना नहीं चाहेंगी।

  • परन्तु इतिहास बताता है, जब-जब भी तामसिक सत्ता अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँची है, सात्विक सत्ता ने प्रकट होकर उसका पूर्ण विनाश किया है। महर्षि अरविन्द ने भी इसके सम्बन्ध में कहा है, ‘‘प्राचीन काल में जब भगवान् अवतार लेते थे तो साथ ही दैत्य भी आया करते थे, जो भगवान् का विरोध करते थे। यह रीति सदा से चली आ रही है।’’ इस प्रकार हम देखते हैं कि हर बार दैत्यों का विनाश हुआ है। इतिहास अपने आपको दोहराता है। अतः आगे भी वही होने वाला है। वह समय अब अधिक दूर नहीं है।

  • उस परमसत्ता के धाम तक पहुँचने के बारे में हमारे सभी ऋषियों की तरह महर्षि अरिविन्द ने भी कहा है,
    ईश्वर यदि है तो उनके अस्तित्व को अनुभव करने का, उनका साक्षात् दर्शन प्राप्त करने का कोई न कोई पथ होगा, वह पथ चाहे कितना ही दुर्गम क्यों न हो, उस पथ पर जाने का मैंने दृढ़ संकल्प कर लिया है; हिन्दू धर्म का कहना है कि अपने शरीर के, अपने भीतर ही वह पथ है, उस पर चलने के नियम भी दिखा दिए हैं उन सब का पालन करना मैंने प्रारम्भ कर दिया है, एक मास के अन्दर अनुभव कर सका हूँ कि हिन्दू धर्म की बात झूठी नहीं है। जिन-जिन चिह्नों की बात कही गयी है मैं उन सब की उपलब्धि कर रहा हूँ।
  • इस प्रकार हम देखते हैं कि उस परमसत्ता तक जाने का जो एक मात्र रास्ता हमारे धर्म ने बताया है, उस पर चलकर ही मंजिल तक पहुँचना सम्भव है, और सारे रास्ते भ्रमित करने वाले और गलत हैं अतः अब अरविन्द की भविष्यवाणी के सच होने का समय आ गया है। श्री अरविन्द ने कहा था, ‘‘एशिया जगत् हृदय की शान्ति का रखवाला है, यूरोप की पैदा की हुई सभी बीमारियों को ठीक करने वाला है। यूरोप ने भौतिक विज्ञान, नियंत्रित राजनीति, उद्योग, व्यापार आदि में बहुत प्रगति कर ली है। अब भारत का काम शुरू होता है। उसे इन सब चीजों को अध्यात्म शक्ति के आधीन करके धरती पर स्वर्ग बसाना है।

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